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________________ याचाराग सूत्र vr... Navr...momorum - - - - - - वाणी से वह अतीत है, तर्क वहां तक नहीं पहुंच पाता और बुद्धि भी प्रवेश नहीं कर सकती। जो आत्मा है, वही विज्ञाता है और जो विज्ञाता है, वही अात्मा है। इस कारण ही वह श्रात्मबादी कहा जाता है। समभाव उसका स्वभाव है। [१७०, १६५] वह लम्बा नहीं है, छोटा नहीं है. गोल नहीं है, टेढा नहीं है, चौकोना नहीं है और मंडलाकार भी नहीं है। वह काला नहीं है, हरा नहीं है, लाल नहीं है, पीला नहीं है और सफेद भी नहीं है। वह न तो सुगंधी है और न दुगंधी ही। वह तीखा नहीं है, कडवा नहीं है, तूरा नहीं है खट्टा नहीं है और मीठा भी नहीं है। वह कठोर नहीं है, कोमल नहीं है, भारी नहीं है, हलका नहीं है, वह ठंडा नहीं है, गरम नहीं है, चिकना नहीं है और रूखा भी नहीं है। वह शरीररूप नहीं है । वह उगता नहीं है, वह संगी नहीं है; वह स्त्री नहीं है, पुरुष नहीं है और नपुंसक भी नहीं है। वह ज्ञाता है, विज्ञाता है। उसको कोई उपमा नहीं है । वह अरूपी सत्ता है, शब्दातीत होने के कारण उसके लिये कोई शब्द नहीं है । वह शब्द नहीं है, रूप नहीं है, गन्ध नहीं है, रस नहीं है, स्पर्श नहीं हैइनसे से कोई नहीं है, ऐसा मैं कहता हूँ। [१७१] संशयात्मा मनुष्य समाधि को प्राप्त नहीं कर सकता । [३६१] कितने ही मनुष्य संसार में रहकर जिन की आज्ञा के अनुसार चलते है, क्तिने ही त्यागी होकर जिन की आज्ञा के अनुसार चलते है परन्तु जिन की आज्ञा के अनुमार न चलने वाले लोगो के प्रति ऐसे दोनों प्रकार के मनुग्यो को ऐमा मान कर कि, "जिन भगवान्
SR No.010795
Book TitleAgam 01 Ang 01 Acharang Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGopaldas Jivabhai Patel
PublisherGopaldas Jivabhai Patel
Publication Year
Total Pages151
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size5 MB
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