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________________ - - याचागंग सुत्र शरीर की ममता छोडना चाहिये। जैसे अग्नि पुरानी लकडियों को एकदम जला डालनी है, वैसे ही प्रात्मा में समाहित और स्थिरबुद्धि मनुष्य क्रोध आदि कपायो को जला दे। यह शरीर नाशवान् है, और भविष्य में अपने कर्मों के फलस्वरूप दुःख भोगना ही पड़ेंगे। कर्मों के कारण तडफते हुए अनेक मनुग्यो और उनके कटु अनुभवी की ओर देखो। अपने पूर्वसम्बन्धो का त्याग करके, विषयामक्ति से उपशम प्राप्त करके शरीर को (संयम के लिये) बराबर तैयार कगे। भविष्य में जन्म न प्राप्त करने वाले वीर पुरुषो का मार्ग कठिन है । अपने मांस और लोही को सुखा डालो। स्थिर मन वाले वीर संयम में रत, सावधान, अपने हित में तत्पर और हमेशा प्रयत्नशील होते है। ब्रह्मचर्य धारण करके कर्म का नाश करने वाले संयमी वीर मनुष्य को ही ज्ञानी पुरुषोने माना है। [१३५-१३७ ] नेत्र अादि इन्द्रियो को वश में करने के पश्चात् भी मंदमति मनुष्य विषयो के प्रवाह से वह जाते हैं। संयोग से मुक्त नहीं हुए इन मनुष्यो के बन्धन नहीं कटते । विषयभोग के कारण दु खो से पीडित और अब भी उनमें ही प्रमत्त रहनेवाले हे मनुप्यो ! मैं तुम्हें सच्ची बात कहता हूं कि मृत्यु अवश्य आवेगी ही। अपनी इच्छायो के वशीभूत, असंयमी, काल से घिरे हुए और परिग्रह में फंसे हुए लोग बारबार जन्म प्राप्त करते रहते हैं। [१३८, १३१] जो मनुष्य पापकर्म से निवृत्त हैं, वे ही वस्तुत. वासना से रहित है। इसलिये बुद्धिमान तथा संयमी मनुष्य कपायो को त्याग दे । जिसको इस लोक में भोग की इच्छा नहीं है, वह अन्य निद्य प्रवृत्ति क्यो करेगा ? ऐसे वीर को कोई उपाधि क्यो होगी ? दृष्टा को उपाधि नही होनी, ऐसा मैं कहता हूं । [ १३६,१२८,१४० ]
SR No.010795
Book TitleAgam 01 Ang 01 Acharang Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGopaldas Jivabhai Patel
PublisherGopaldas Jivabhai Patel
Publication Year
Total Pages151
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size5 MB
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