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सम्यक्त्व
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मनुष्य प्रारम्भ के त्यागी होते है, इस सचाई को ध्यान में रखो। जिलने वध, बंध, परिताप और बाहर के (पाप) प्रवाहों को रोक दिया है और कर्म के परिणामो को समझ कर जो नैकर्म्यदर्शी (आत्मदर्शी) हो गया है वह वेदवित् (वेद अर्थात् ज्ञान को जानने वाला) कर्मवन्धन के कारणो से पर (दर) रहता है। [१३८-१३६]
अज्ञानियो को जो बन्ध के कारण है, वे ही ज्ञानियो को मुक्ति के कारण हैं, और जो ज्ञानियो को मुक्ति के कारण है, वे ही अज्ञानियो को बन्ध के कारण है। इसको समझने वाले संयमी को ज्ञानियो की आज्ञा के अनुसार लोक के स्वरूप को समझ कर, उनके बताए हुए मार्ग पर चलना चाहिये । संसार में पडकर धक्के खाने के बाद जागने और समझने पर मनुप्यो के लिये ज्ञानी पुरुप मार्ग बतलाते है। [१३०-१३१]
ज्ञानी पुरुपो से धर्म को समझ कर, स्वीकार करके पडा न रहने दे। परन्तु जो सुन्दर और मनोवाछित भोग पढार्य प्राप्त हुए हैं, उनसे वैराग्य धारण करके लोकप्रवाह का अनुसरण करना छोड़ दे। मने देखा है और सुना है कि संसार में आसक्त होकर विपयो में फंसने वाले मनुष्य बारबार जन्म को प्राप्त होते है। ऐसे प्रमादियो को देख कर, त्रुद्विमानको सदा सावधान, अप्रमत्त और प्रयत्नशील रह कर पराक्रम करना चाहिये, ऐसा मै कहता हूं। [१२७-१२८]
जिन की आज्ञा मानने वाले निस्पृह बुद्धिमान मनुष्य को अपनी आत्मा का बराबर विचार करके उसको प्राप्त करने के लिये