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________________ पांचवां अध्ययन -(.)लोकसार विपयी मनुप्य अपने भोगो के प्रयोजन से अथवा बिना किसी प्रयोजन से हिंसा आदि प्रवृत्ति करते रहते हैं। इस कारण वे अनेक योनियो मे भटकते रहते है। उनकी कामनाएँ बढी-बड़ी होती हैं। इस कारण वे मृत्यु से घिरे रहते हैं। अपनी कामनाओं के कारण ही वे सच्चे सुख से दूर रहते हैं। ऐसे मनुष्य न तो विपयो को भोग ही सकते हैं और न उनको त्याग ही सकते है। [१४१] रूप आदि में आसक्त और दुर्गति में भटकने वाले जीवो को देखो। वे वारवार अनेक दु.खो को भोगते रहते है। अपनी प्रासक्ति के वश में होकर वे अशरण को शरण मानकर पापकर्मों में ही लीन रहते है। अपने सुख के लिये चाहे जैसे क्रूर कर्म करने और उनके परिणामो से दुखी वे सूढ और मन्द मनुष्य विपर्यास (सुख के बदले दुःख) को प्राप्त करते हैं और वारवार गर्भ, मृत्यु और मोह को ही प्राप्त होते है। ऐसे मनुग्यो की एक समान यही चर्चा होती है, वे अति क्रोधी, अति मानी, अति मायावी, अति लोभी, अति श्रासक्त, विषयो के लिये नट के समान आचरण करने वाले, अति शठ, अति संकल्पी, हिसा आदि पापकर्मी में फसे हुए और अनेक कर्मों से घिरे हुए होते है । कितने ही त्यागी कहलाने वाले साबुनो की
SR No.010795
Book TitleAgam 01 Ang 01 Acharang Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGopaldas Jivabhai Patel
PublisherGopaldas Jivabhai Patel
Publication Year
Total Pages151
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size5 MB
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