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तीसरा अध्ययन
-(6)सुख और दुःख
SAREE
संसार के लोगो की कामनायो का पार नहीं है। वे चलनी में पानी भरने का प्रयत्न करते है। उन कामनाओं को पुरी करने में दूसरे प्राणियो का वध करना पढे, उनको परिताप देना पड़े, उनको वश में करना पड़े या सारे के सारे समाज को वैसा करना पड़े तो भी वे धागे-पीछे नहीं देखते है । काममूढ और रागटेप में फंसे हुए वे मन्द मनुष्य इस जीवन की मान-पूजा में श्रासक्त रहते हैं। और अनेक वासनाओ को इक्ट्ठी करते हैं। इन वासनायो के कारण वे वारबार गर्भ को प्राप्त होते हैं। विषयो में मूढ़ मनुष्य धर्म को न जान सकने के कारण जरा और मृत्यु के वश ही रहता है । [११३, १११, ११६, १०८ ]
इसी लिये बीर मनुष्य विषयसंग से प्राप्त होने वाले बंधन के स्वरूप को और उसके परिणाम में प्राप्त होने वाले जन्ममरण के शोक को जान कर संयमी बने तथा छोटे और बड़े सब प्रकार की अवस्था में वैराग्य धारण करे । हे ब्राह्मण ! जन्म और मरण को समझ कर तू संयम के सिवाय दूसरी तरफ न जा, हिंसा न कर, न करा, तृष्णा से निर्वेद प्राप्त कर, स्त्रियो से विरक्त होकर उच्चदर्शी वन, और पापकर्मों से छट । संसार की जाल को समझकर राग