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लोकविजय
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मुझे नहीं देता, ऐसा कह कर वह क्रोध नहीं करता; थोढा देने वाले की निंदा नहीं करता, कोई देने का नकारा कहे तो वह लौट जाता है, देदे तो वापिस स्थान पर आ जाता है; अाहार मिलने पर प्रसन्न नहीं होता, न मिले तो शोक नहीं करता; श्राहार मिलने पर उसको अपने परिमाण से लेता है, अधिक लेकर संग्रह नहीं करता, तथा अपने आप को सब प्रकार के परिग्रह से दूर रखता है। पार्य पुरुषो ने यही मार्ग बताया है, जिससे बुद्धिमान् लिप्त नहीं हो पाता ऐसा मैं कहता हूँ। [८५-६१]
वह संयमी मुनि जिस प्रकार धनवान को उपदेश देता है उसी प्रकार तुच्छ गरीव को भी; और जिस प्रकार गरीब को उपदेश देता है, उसी प्रकार धनवान को भी। धर्मोपदेश देते समय यदि कोई उसे अनादर से मारने को तैयार होता है तो उसमें भी वह अपना कल्याण समझता है। उसका श्रोता कौन है, और वह किस का अनुयायी है, ऐसा सोचने में वह अपना कल्याण नहीं समझता । [१०१-१०२]
बंध को प्राप्त हों को मुक्त करने वाला वह वीर प्रशंसा का पात्र है। [१०२]