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सुख और दुःख
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और द्वेप से अस्पृष्ट रहने वाला छेदन-भेटन को प्राप्त नहीं होता, न वह जलता और न मारा ही जाता है । [११४, ११६ ]
माया श्रादि कपायो से और विषयासक्ति रूप प्रमाद से युक्त मनुष्य बारबार गर्भ को प्राप्त होता है। किन्तु शब्दरूपादि विषयो में तटस्थ रहनेवाला सरल और मृत्यु से डरने वाला जन्ममरण से मुक्त हो सकता है । ऐमा मनुष्य कामो मे अप्रमत्त, पापकर्मी से उपरत, वीर, और श्रात्मा की सब प्रकार से (पापो से) रक्षा करने वाला, कुशल तथा संसार को भयस्वरूप समझने वाला और संयमी होता है । [१०६, १११]
लोगो में जो अज्ञान है, वह अहित का कारण है । दुःख मात्र प्रारंभ (मकाम प्रवृत्ति और उसके परिणाम में होने वाली हिमा) से उत्पन्न होता है, ऐसा समझ कर, प्रारंभ अहितकर हैं, यह मानो । कर्म से यह सब सुखदुःखरूपी उपाधि प्राप्त होती है । निष्कर्म मनुष्य को संमार नहीं बंधता | इस लिये कर्म का स्वरूप समझ कर और कर्ममूलक हिंसा को जान कर, सर्व प्रकार से संयम को स्वीकार करके; राग और द्वेप से दूर रहना चाहिये । बुद्धिमान लोक का स्वरूप समझ कर, कामिनी-कांचन के प्रति अपनी लालसा का त्याग कर के, दूसरा सब कुछ भी छोडकर संयम धर्म में पराक्रम करे । [१०६, १०६, १००]
कितने ही लोग भागे-पीछे का ध्यान नहीं रखते, क्या हुया और क्या होगा, इसका विचार नहीं करते । कितने ही ऐसा भी कहते है कि जो हुया है, वहीं होगा। परंतु तथागत (सत्यदर्शी)