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________________ [999 ४. फेंक देने योग्य जिसको कोई भिखारी याचक लेना म चाहे ऐसा ही पात्र मागे या कोई दे तो ले ले । पात्र MA इनमें से कोई एक नियम लेने वाला दूसरे की अवहेलना न करे (भिक्षा अध्ययन के सूत्र ०३, पृष्ट ८३ के अनुसार ) | इन नियमो के अनुसार पात्र मांगने जाने वास्ते भिनु को गृहस्थ देने का वचन - म्यान दे अथवा पात्र तेल, घी आदि लगाकर या सुगन्धित पदार्थ, ठंडे या गरम पानी से साफ करके दे तो ( वस्त्र अन्ययन के सूत्र १४६, पृष्ट १०६ के अनुसार ) उसको सदोप जान कर न ले । यदि गृहस्थ भिक्षुको कहे कि, 'तुम थोडी देर ठहरो, हम भोजन तैयार करके पात्र में श्राहार भर कर तुमको देंगे, भिक्षु को खाली पात्र देना योग्य नहीं है ।' इस पर भिक्षु पहिले ही मना कर दे और इतने पर भी गृहस्थ वैसा करके ही देने लगे तो वह न ले । गृहस्थ से पात्र लेने के पहिले भिन्तु उसे देख भाल ले; सम्भव है, उसमें जीव जन्तु, वनस्पति श्रादि हो । ( आगे, वस्त्र अध्ययन के सूत्र १४७- १४८, पृष्ट १०७-१०८ के अनुसार सिर्फ सुखाने की जगह 'पात्र यदि तेल, घी आदि से भरा हो तो निर्जीव जमीन देख कर वहां उसे सावधानी से साफ़ कर ले,' ऐसा समझें 1 ) [१२] गृहस्थ के घर भिक्षा लेने जाते समय पात्र को पहिले देख भाल कर साफ कर ले जिससे उसमें जीवजन्तु या धूल न रहे । [ १५३]
SR No.010795
Book TitleAgam 01 Ang 01 Acharang Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGopaldas Jivabhai Patel
PublisherGopaldas Jivabhai Patel
Publication Year
Total Pages151
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size5 MB
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