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________________ Avh Annanovnod विहार - हो और लोगो का आना जाना भी शुरु हो गया हो तो वह सावधानी से विहार करना शुरु करदे । [११३] किस प्रकार विहार करे ? भिक्षु चलते समय अपने सामने चार हाथ जमीन पर दृष्टि रखे। रास्ते में जीवजन्तु देख कर, उनको बचाते हुए पैर रखे। जीवजन्तु से रहित रास्ता यदि लम्बा हो तो उसी से जावे, जीवजन्तु वाले छोटे रास्ते से नहीं। [११४ ] भिक्षु दूसरे गांव जाते समय मार्ग में गृहस्थ आदि से जोर से ___ बातें करता हुश्रा न चले । रास्ते में राहगिर मिले और पूछे कि 'यह · गांव या शहर कैसा है, वहाँ क्तिने घोड़े, हाथी, भिखारी या मनुष्य है; वहाँ आहार-पानी, मनुष्य, धान्य श्रादि कम या अधिक हैं;' तो भिक्षु उसको कोई जवाब न दे। इसी प्रकार वह भी उससे ऐसा कुछ न पूछे। [ १२३, १२६] जाते समय साथ में प्राचार्य, उपाध्याय या अपने से अधिक गुण सम्पन्न साधु हो तो इस प्रकार चले कि उनके हाथपैर से अपने हाथपैर न टकरावें, और रास्ते में राहगिर मिलें •और पूछे कि, 'तुम कौन हो? कहां जाते हो तो उसका जवाब खुद न देते हुए प्राचार्य श्रादि को देने दे और वे जवाब दे रहे हो तब वीच मे न बोले । [१२८] रास्ते में कोई राहगिर मिले और पूछे कि, 'क्या तुमने रास्ते में अमुक मनुष्य, प्राणी या पक्षी देखा है, अमुक कंद, सूल या वनस्पति; या अग्नि, पानी या धान्य देखा है ? जो देखा हो, कहो,'-तो उसे कुछ न कहे या बतावे। उसके प्रश्न की उपेक्षा ही कर दे।
SR No.010795
Book TitleAgam 01 Ang 01 Acharang Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGopaldas Jivabhai Patel
PublisherGopaldas Jivabhai Patel
Publication Year
Total Pages151
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size5 MB
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