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________________ ६३ गाथा २१ (6) चतुरिन्द्रिय पर्याप्त, (१०) चतुरिन्द्रिय अपर्याप्त, (११) असंजी पंचेन्द्रिय पर्याप्त, (१२) असंज्ञी पञ्चेन्द्रिय अपर्याप्त, (१३) सज्ञी पञ्चेन्द्रिय पर्याप्त, (१४) सज्ञो पचेन्द्रिय अपर्याप्त । प्रश्न २२-इन १४ प्रकारके जीवसमासोमे से कौनसा भेद उपादेय है ? उत्तर- इनमेसे एक भी प्रकार उपादेय नही है, क्योकि ये सब विकृत पर्यायें है और इनका आकुलतावोसे जन्म है, आकुलतावोको जनक है । प्रश्न २३- तब कौनसी अवस्था उपादेय है ? उत्तर- अतीत जीवसमासकी अवस्था उपादेय है, क्योकि वहां प्रात्मा सम्पूर्ण गुण स्वाभाविक पर्यायपरिणत हो जाते है, अतः वह अवस्था सहज अनन्तानन्दमय है । प्रश्न २४-अतीत जीवसमास होनेका उपाय क्या है ? उत्तर- जीवसमाससे पृथक् अनादि अनत निज चैतन्यस्वभावकी उपासना अतीत जीवसगस होनेका बीज है । इस प्रकार ससारी जीवोका जीवसमास द्वारा विवरण करके अब इस गाथामे मार्गणा व गुणस्थानोका वर्णन करके नयविभागसे शुद्धता व अशुद्धताका विभाग बताते है मग्गण गुणठाणेहि चउदसहि हवति तह पसुद्धणया । विण्णेया संसारी सत्वे सुद्धा दु मुद्धणया ॥१३॥ अन्वय- तह संसारी असुद्धणया मग्गणगुणठाणेहि चउदसहि हवति । दु सुद्धणया सब्वे सुद्धा विण्णेया। . अर्थ- तथा समारी जीव अशुद्धनयसे १४ मार्गणा व १४ गुणस्थानोके द्वारा १४-१४ प्रकारके होते है, किन्तु शुद्धनयसे सभी जीव शुद्ध जानना चाहिये । प्रश्न १- गुणस्थान किसे कहते है ? उत्तर--मोह और यो के निमित्तसे सम्यक्त्व और चारित्र गुणोकी जो अवस्थायें होती है उन्हे गुणस्थान कहते है। प्रश्न २-गुणस्यान कितने होते है ? उत्तर-गुणस्यान तो असंख्याते होते हैं, क्योकि प्रात्मगुणोके परिणमन असंख्याते प्रकारके है, किन्तु उन्हे प्रयोजनानुसार सक्षिप्त करके १४ प्रकारका कहा है । वे ये है(१) मिथ्यात्व, (२) सासादन सम्यक्त्व, (३) सम्यग्मिथ्यात्व, (४) अविरतसम्यक्त्व, (५) देशविरत, (६) प्रमत्तविरत, (७) अप्रमत्तविरत, (८) अपूर्वकरण, (९) अनिवृत्तिकरण (१०) सूक्ष्मसाम्पराय, (११) उपशान्तकपाय, (१२) क्षीणकपाय, (१३) सयोगकेवली, (१४) प्रयोगवनी।
SR No.010794
Book TitleDravyasangraha ki Prashnottari Tika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSahajanand Maharaj
PublisherSahajanand Shastramala
Publication Year1976
Total Pages297
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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