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________________ गाथा ११ जन्म होता है वे श्रीन्द्रिय जीव कहलाते है । जैसे चीटी, खटमल, बिच्छू, जूं आदि । प्रश्न ३४-- श्रीन्द्रिय जीवोकी कितनी श्रवगाहना है ? ५६ उत्तर-- श्रीन्द्रिय जीवोकी अवगाहना घनांगुलके असख्यातवें भागसे ३ कोश प्रमाण तक होती है । तीन कोशकी अवगाहना वाला बिच्छू अन्तिम स्वयंभूरमण द्वीपमे पाया जाता है । प्रश्न ३५ - चतुरिन्द्रिय जीव किन्हे कहते है ? उत्तर - स्पर्शनेन्द्रियावरण, रसनेन्द्रियावरण प्रोर चक्षुरिन्द्रियावरण के क्षयोपशमसे तथा वीर्यान्तराय के क्षयोपशमसे एव श्रङ्गोपाङ्ग नामकर्मके उदयसे जिन जीवोका चार इन्द्रिय कायसे जन्म होता है उन्हे चतुरिन्द्रिय कहते है । जैसे - ततईया, मक्खी, मच्छर, भौरा टिड्डी, तितली श्रादि । प्रश्न ३६ - चतुरिन्द्रिय जीवोकी कितनी अवगाहना होती है । उत्तर - चतुरिन्द्रिय जीवोकी प्रवगाहना घनांगुलके प्रसंख्यातवें भागसे लेकर १ योजन तकी होती है । १ योजनकी अवगाहना वाला भ्रमर अन्तिम ( स्वयंभूरमण नामक ) द्वीपमे पाया जाता है । प्रश्न ३७ -- पञ्चेन्द्रिय जीवके कितने भेद है ? उत्तर- पचेन्द्रिय जीव २ प्रकारके पञ्चेन्द्रिय तो केवल तिर्यग्गतिमे ही होते है, है । नरकगति, मनुष्यगति और देवगतिमें ये सज्ञी पचेन्द्रिय जीव ही होते है । है --- (१) प्रसज्ञोपञ्चेन्द्रिय, (२) संज्ञी । असज्ञी किन्तु सझी पञ्चेन्द्रिय जीव चारो गतियोमे होते प्रश्न ३८ - प्रसज्ञी किन्हे कहते है ? उत्तर- जिनके मन न हो उन्हें असज्ञी कहते है । मन श्रालम्बनसे ही हित अहितका विचार और हेयोपादेयके त्याग और ग्रहणकी प्रवृत्ति होती है । (एकेन्द्रिय, द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय जीव भी मात्र प्रसज्ञी होते है ) । प्रश्न ३६ - सज्ञी जीव किन्हे कहते है ? उत्तर - जिनके मन हो जो शिक्षा, उपदेश ग्रहण कर सकें । ( संज्ञी जीव ही सम्यक्त्व उत्पन्न कर सकता है) । प्रश्न ४० -- पञ्चेन्द्रिय जीव किन्हे कहते है ? उत्तर- स्पर्शनेन्द्रियावरण, रसनेन्द्रियावरण, घ्राणेन्द्रियावरण, चक्षुरिन्द्रियावरण श्रीर श्रोत्रेन्द्रियावरण के क्षयोपशम से एव वीर्यान्तरायके क्षयोपशमसे तथा श्रङ्गोपाङ्गनामा नामकर्मके उदयसे पाँच इन्द्रिय वाले कायमे जिन जीवोका जन्म होता है उन्हे पञ्चेन्द्रिय जीव कहते है । इनमे जिन जीवोके नोइन्द्रियावररणका भी क्षयोपशम होता है उन्हे संज्ञी पञ्चेन्द्रिय कहते है और जिनके नोइन्द्रियावरणका क्षयोपशम नही होता है उन्हे प्रसज्ञीपचे
SR No.010794
Book TitleDravyasangraha ki Prashnottari Tika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSahajanand Maharaj
PublisherSahajanand Shastramala
Publication Year1976
Total Pages297
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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