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________________ ६० द्रव्यसग्रह-प्रश्नोत्तरी टीका न्द्रिय कहते हैं। प्रश्न ४१- पचेन्द्रिय जीवोकी कितनी प्रवगाहना है ? उत्तर-घनागुलके असख्यातवें भागसे १००० योजन तक । १००० योजन लम्बा और ५०० योजन चौडा व २५० योजन मोटा देहवाला महामत्स्य स्वयभूरमण नामक अन्तिम समुद्रमे पाया जाता है। प्रश्न ४२-क्या सभी जीव त्रस और स्थावरोमें ही पाये जाते है ? उत्तर--मुक्त जीव न स हैं और न स्थावर । वे उस और स्थावरकी समस्त योनियों से मुक्त हो गये है। प्रश्न ४३- अस स्थावर जीवोमे जन्म क्यो होता है ? उत्तर-इन्द्रिय सुखमे आसक्त होनेसे और इसी कारण उस स्थावर जीवोकी हिंसा होनेसे इन जीवोमे जन्म होता है। प्रश्न ४४.- इन्द्रिय सुखको आसक्ति न्यो,होती है ? उत्तर-- शुद्धचेतन्यमात्र निजपरमात्मत्वकी भावनासे उत्पन्न होने वाले परम प्रतीन्द्रिय सुग्वका जिन्हे स्वाद नहीं है उनके इन्द्रिय मुखोमे प्रासक्ति होती है। अत: जिनके संसारजन्म से निवृत्त होनेको वाञ्छा हो उन्हे अनादि अनन्त अहेतुक निज चैतन्यस्वरूप कारणपरमात्मा को भावना करनी चाहिये । अव प्रस, स्थावर जीवोका ही १४ जीवममासोके द्वारा और विवरण करते है । समणा अमणा गया पचेदिय जिम्मरणा परे सब्वे । वादर सुहमे इन्दी सव्वे पज्जत्त इदरा य ॥१२॥ अन्वय-पचेदिव समणा श्रमणा णेया, परे सव्वे हिम्मणा, एन्दी चादर गृह, सब्बे पज्जत्त य इदरा। अर्थ- पचेन्द्रिय जीव समनस्क (मज्ञी) और अमनस्क (ग्रसजी) के भेदसे दो प्रकारके है। वाको और जीव याने द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय व चतुरिन्द्रिय जीव अशी है । एपेन्द्रिय जीव भी असज्ञी हैं और वादरमूक्ष्मके भेदमे दो प्रकारके है। ये मव सानो प्रकारले जीव याने वादरएकेन्द्रिय, मूक्ष्मएकेन्द्रिय, द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिग, प्रमजी पन्नेन्द्रिय पोर गंझी. पचेन्द्रिप ये सब पर्याप्त है और अपर्याप्त है। इग प्रकार ये १४ जीबगमाग है। प्रश्न १- पर्याप्त क्मेि कहते है ? उत्तर- जिनके पर्याप्तिनामनर्मका उदय है उन्हें पर्याप्त कहते है। प्रश्न २-पर्याप्निनामर्म फिने कहते है ? उत्तर-- जिस नामकर्मक उदयमे जीव अपने-अपने योग्य ६,५ या नियमों
SR No.010794
Book TitleDravyasangraha ki Prashnottari Tika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSahajanand Maharaj
PublisherSahajanand Shastramala
Publication Year1976
Total Pages297
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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