SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 61
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ गाथा १० प्रमाण स्थिति रह जाती है । प्रश्न ३५- केवलिसमुद्घात होनेका कारण क्या है ? उत्तर-- केवलिसमुद्घात स्वय होता है, इसमे निमित्त कारण अधातिया कर्मोंकी स्थिति पूर्वोक्त प्रकारसे विषम शेष रह जाना है। प्रश्न ३६-- समुद्घातके सिवाय अन्य समयोमे आत्मा किस प्रमाण है ? ___ उत्तर-समुद्घातके सिवाय अन्य समयोमे आत्मा व्यवहारनयसे अपने-अपने छोटे या बडे देह प्रमाण है। प्रश्न ३७- प्रात्मा देहप्रमाग ही क्यो है ? उत्तर-आत्मा अनादिसे निरन्तर देह धारण करता चला आया है उनमे यदि बडे देहसे छोटे देहमे आता है तो सकोच स्वभावके कारण उस छोटे देहके प्राण हो जाता है और यदि छोटे देहसे बडे देहमे आता है तो विस्तार स्वभावके कारण उस बडे 'देह प्रमाण हो जाता है। प्रश्न ३- देहसे सर्वथा मुक्त होनेपर आत्मा कितने प्रमाण रहता है ? उत्तर- जिस देहसे मुक्त हुमा उस देह प्रमाण यह मुक्त आत्मा मुक्ति अवस्थामे रहता है। प्रश्न ३६- मुक्त होनेपर आत्मा जानकी तरह प्रदेशोसे भी सर्वलोकमें क्यो नही फैल जाता? उत्तर- देहसे मुक्त होनेके बाद सकोच विस्तारका कोई कारण न होने से आत्मा जिस प्रमाण था उस ही प्रमाण रह जाता है । ज्ञान भी सर्वलोकमे नही फैलता, किन्तु ज्ञान प्रात्मप्रदेशोमे ही रहकर समस्त लोक अलोकके आकार ज्ञानरूपसे परिणम जाता है। प्रश्न ४०- किस व्यवहारनयसे आत्मा देह प्रमाण है ? । - उत्तर- अनुपधरित असद्भूतव्यवहारनयसे आत्मा देह प्रमाण है । 'यहा देह और आत्माका एकक्षेत्रावगाह हैं इसलिये अनुपचरित है । 'देहका निज क्षेत्र देह, है, आत्माका निज क्षेत्र प्रात्मामे है, इस प्रकार आत्मा व देहका परस्पर 'अत्यन्ताभाव होनेसे असद्भुत है । यह आकार पर्याय है, इसलिये व्यवहार है। । प्रश्न ४१-"निश्चयनयसे आत्मा किस प्रमाण है ? उत्तर- निश्चयनयसे आत्मा अपने असख्यात प्रदेश प्रमाण है । यह प्रमोणता सर्वत्र सर्वदा इतनी ही रहती है। प्रश्न ४२- शरीरको अवगाहना कमसे कम कितनी हो सकती है ? । उत्तर- कमसे कम शरीरकी अवगाहना उत्सेधागुलके असंख्यातवें भाग प्रमाण होती
SR No.010794
Book TitleDravyasangraha ki Prashnottari Tika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSahajanand Maharaj
PublisherSahajanand Shastramala
Publication Year1976
Total Pages297
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy