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द्रव्यसंग्रह-प्रश्नोत्तरी टीका है । उत्सेधागुल प्रायः प्राजकल अगुल प्रमाण होता है । इतना ही शरीर लब्ध्यपर्याप्तक सूक्ष्मनिगोदियाका होता है।
प्रश्न ४३-- शरीरकी अवगाहना बडीसे बडी कितनी हो सकती है ?
उत्तर-- शरीरकी उत्कृष्ट अवगाहना एक हजार योजन प्रमाण हो सकती है । इतना शरीर स्वयभूरमण समुद्रमे महामत्स्यका होता है ।।
प्रश्न ४४-- मध्यम अवगाहना कितने प्रकारकी है ?
उत्तर-जघन्य अवगाहनासे ऊपर और उत्कृष्ट अवगाहनासे नीचे असख्यात प्रकार की मध्यम अवगाहना होती है।
प्रश्न ४५-यह प्रात्मा देहमे ही क्यो बसता चला पाया है ?
उत्तर-देहमे ममत्व होनेके कारण देहोमे बसता चला आया है। आयु स्थितिके क्षयके कारण किमी एक देहमे चिरस्थायी नहीं रह सकता है तथापि देहात्मबुद्धि होनेके कारण त्वरित अन्य देहको धारण कर लेता है। जन्म मरणके दुख और देहके सम्बन्धसे होने वाले भुवा, तृषा, इष्टवियोग, अनिष्टसयोग, वेदना आदिके दुःख इस देहात्मबुद्धिके कारण ही भोगने पड़ते है।
प्रश्न ४६-देहसे मुक्त होनेके क्या उपाय है ?
उत्तर-देहसे ममत्व हटावे, देहमे आत्मबुद्धि न करना देहमे मुक्त होनेका मूल उपाय है।
प्रश्न ४७-- देहात्मबुद्धि दूर करनेके लिये क्या पुरुषार्थ करना चाहिये ?
उत्तर- मै अशरीर, अमूर्त, अकर्ता, प्रभोक्ता, शुद्ध चैतन्यमात्र हूँ----इस प्रकार अपना अनुभव करे । इस परम पारिणामिक भावमय निज शुद्ध पात्माके अवलम्बनसे जीव पहिले मोहभावसे मुक्त होता है, पश्चात् कषायोसे मुक्त होता है, इनके साथ ही मोहनीय कर्मका क्षय हो जाता है। तदनन्तर ज्ञानावरण, दर्शनावरण व अन्तरायका क्षय एव अनन्तज्ञान, अनन्तदर्शन व अनन्तशक्तिका आविर्भाव हो जाता है। तत्पश्चात् शेष अघातिया कर्मोसे व देहसे सर्वथा मुक्त हो जाता है । इस सबका एक मात्र उपाय अनादि अनन्त अहेतुक चैतन्यमात्र निज कारणपरमात्माका अवलम्बन है।
इस प्रकार "आत्मा स्वदेह प्रमाण है" इस प्रर्थके व्याख्यानका अधिकार समाप्त करके "जीव ससारस्थ. है" इसका वर्णन करते है--
पुढविजलतेयवाऊ वरणफ्फदी विविहथावरेइदी।
विगतिगचदुपचक्खा तस जीवा होति सखादी ॥११॥ , अन्वय-- पुढविजलतेयवाऊ वणफ्फदी विविहए इदा थावरे होती सखादि विगतिगचदु