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________________ गाथा ५८ २२३ विह्वलता हो ही जावेगी। विह्वल पुरुषके चित्तकी एकाग्रता नही रहती है, अतः ध्यान भी नही हो सकती। जो परीषहविजयी है वे मोहियोके माने हुये संकटोके उपस्थित होनेपर भी ज्ञानभावसे च्युत नही होते । इस प्रकार परीषहविजय ध्यानसिद्धिमे कारण होता है। प्रश्न २६-तप, व्रत, श्रुतमे निरत सदा होनेका उपदेश किया, सो सदाका अर्थ क्या उत्तर-जब तक ध्यानसे च्युत होकर अपध्यानकी कभी भी सभावना न रहे तब तक इन तीनोमे 'सदा निरत हो उन्हे' यह तात्पर्य सदा शब्दसे निकलता है । प्रश्न २७- ध्यानकी प्राप्ति होनेपर क्या अनन्तकाल तक ध्यान बना रहता है ? उत्तर- अन्तर्मुहूर्त परमोत्कृष्ट अभेदध्यान होनेपर परमात्मत्व, सर्वज्ञत्व प्रकट हो जाता है, पश्चात् अतीतध्यान अवस्था हो जाती है, फिर न तो ध्यान रहता है और न ध्यान की आवश्यकता ही होती है । इस प्रकार द्रव्योके यथार्थ परिज्ञानके फलभूत ध्यानका वर्णन करके ग्रन्थसमाप्तिपर पूज्य श्रीमन्नेमिचन्द्रजी सिद्धान्तिदेव अन्तमे श्रुतदेवताके प्रति भक्तिरूप अपनी लघुताकी सूचना करते हुये अन्तिम गाथा कहते है दव्वसग्रहमिण मुरिणणाहा दोससचयचुदा सुदंपुण्णा । - मोधयतु तणुसुत्तधरेण णेमिचदमुरिणणाभरिणयं ज ॥५८॥ अन्वव- तणुसुत्तधरेण 'णेमिचदमुणिणा ज भरिणय, इव दव्वसग्रह दोससचयचुदा सुदपुण्णा मुणिणाहा सोधयतु । अर्थ-अल्पज्ञानी नेमिचद मुनिके द्वारा जो कहा गया है, ऐसे इस द्रव्यसग्रहको समस्त दोषोसे रहित और श्रुतमे परिपूर्ण, ऐसे मुनि प्रधान गुरुजन सिद्ध करे । प्रश्न १-द्रव्यसग्रहका शब्दार्थ क्या है ? उत्तर- जिसने पर्यायोरूपसे परिणमन किया व कर रहा है एव करता रहेगा वह द्रव्य कहलाता है । ऐसे-ऐसे समस्त द्रव्योका वर्णनात्मकसग्रह जिसमे किया गया उस गाथाको द्रव्यंसग्रह कहा गया है। प्रश्न २-समस्त द्रव्योंका जातिको अपेक्षासे किस-किस प्रकार संग्रह किया जा सकता है। उत्तर- जीव, पुद्गल, धर्म, अधर्म, आकाश और काल-इन छ: जातियोमे तज्जातोय सर्वद्रव्योका सग्रह हो जाता है । ___“प्रश्न ३- इन छः जातियोका भी किन-किन विशेषताप्रोमे किन-किनकाअन्तर्भाव हो सकता है ?
SR No.010794
Book TitleDravyasangraha ki Prashnottari Tika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSahajanand Maharaj
PublisherSahajanand Shastramala
Publication Year1976
Total Pages297
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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