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________________ २८२ द्रव्यसंग्रह-प्रश्नोत्तरी टीका प्रश्न १८- देहसे वैराग्य कैसे होता है ? उत्तर-यह ही दुःश्वका अवलाब कारण है। इसोका सम्बन्ध नाना वेदनापोका मूल है और फिर भी यह देह हाड मासका पुतला अनेक रोगोसे घिरा हुआ है इत्यादि देहके स्वरूपके ज्ञानके बलसे देहसे अनुराग हट जाता है। प्रश्न १६-अजोसे उपेक्षा कैसे हो जाती है ? उत्तर- पञ्च इन्द्रियोके साधनभूत दृश्यमान ये जड पदार्थ मुझ चेतनसे अत्यन्त भिन्न है, इनकी चाहसे ही मेरा अनन्त वैभव ढका हुआ है, इनका ममागम भी विद्युतको तरह चञ्चल है इत्यादि सत्य भावनावोंके वलसे भोगोसे उपेक्षा हो जाती है । प्रश्न २०- ससारसे वैराग्य पानेसे ध्यानपर कमे असर होता है ? उत्तर-जव मन वचन कायकी चेटावोमे रति नही होती है तब उपयोगको इनमे आश्रय न मिलनेसे उपयोगकी अस्थिरता समाप्त होती है । यही उपयोगकी स्थिरताका ध्यान है। इस प्रकार ससारमे वैराग्य होनेसे ध्यानकी वृद्धि होती है । प्रश्न २१- तत्त्वज्ञान किसे कहते है ? उत्तर- स्वभाव व परभावके भेदविज्ञानके बलसे स्वत.सिद्ध, ध्रुव सहजामन्दमय चैतन्य परमतत्त्वके उपयोगको तत्त्वज्ञान कहते है। पन २२-तत्त्वज्ञानमे ध्यानकी सिद्धि क्यो सुगम है ? उत्तर- तत्त्वज्ञानमे उपयोगका विषय अपरिणामी, स्वत सिद्ध, परमपारिणामिक , भावमय निज चैतन्यरस रहता है, सो स्थिर विषयके उपयोगसे ध्यान भी स्थिर होता है । प्रश्न २३- तत्त्वज्ञानसे ध्यानको कैसे सिद्धि होती है ? उत्तर-बाह्य परिश्रमका प्राश्रय करके प्राभ्यन्तर परिग्रह इच्छाका प्रादुर्भाव होता है । इच्छाके उदयमे चित्तकी चञ्चलता रहती है। जब वाह्य परिग्रहका आश्रय छोड दिया जाता है तब बाह्य व आभ्यन्तर समस्त परिग्रहोके अभावसे इच्छा समाप्त हो जाती है और इस निर्वाञ्छकताके फलमे स्वसवेदनकी स्थिरता होती है। इस प्रकार इस उत्कृष्ट ध्यानकी साधिका निष्परिग्रहता है। प्रश्न २४-वशचित्ततासे ध्यानकी सिद्धि कैसे होती है । उत्तर-चित्तके वश होनेसे अर्यात् भोग, प्रशसा, कोति आदिके आधीन चित्तके न होनेसे चित्तकी एकाग्रता रह सकती है। और इस एकाग्रतामे एक उपादेय तत्त्वकी ओर चिन्तन रुक जाता है । इस प्रकार वशचित्ततासे ध्यानकी सिद्धि होती है। पश्न २५-परीषहविजय ध्यानकी सिद्धिमे कैसे कारण पडता है ? उत्तर-परीषहोके (उपसर्ग याने उपद्रवोके) आने पर जो परीषहविजयो नही है उसे
SR No.010794
Book TitleDravyasangraha ki Prashnottari Tika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSahajanand Maharaj
PublisherSahajanand Shastramala
Publication Year1976
Total Pages297
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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