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गाया ५७
२८१ काश नही है । वहाँ नो जैसे हिसादि अशुभ भावोसे निवृत्ति है वैसे ही जीवरक्षादि शुभ भावोसे भी पूर्ण निवृत्ति है, अन्यथा मोक्षकी प्राप्ति असम्भव हो जायेगी।
प्रश्न १०-क्रथा निश्चयनत, निश्चयतप और निश्चयश्रुतके बिना मोक्षकी प्राप्ति नही होती?
___ उत्तर-निश्चयव्रत, निश्चयतप और निश्चयश्रुत रूप परमसमाधिके बिना मोक्षको प्राप्ति असम्भव है।
प्रश्न ११-जिनके सकलसयमका उत्कृष्ट अन्तर कुछ अन्तमहूर्त कम अर्द्धपुद्गल परिवर्तनकाल तकका बनाया है वहां सकलसयम होते ही अन्तर्मुहूतं मोक्ष माना है । वहाँ निश्चयतप आदिका अवसर ही कैसे हो सकता है ?
उत्तर-ऐसी स्थितिमे भी निश्चयतप श्रादि रूप परमसमाधि तो होती ही है, किन्तु उसका अधिक काल न होनेसे वह लोकप्रसिद्ध नही हो पाती।
प्रश्न १२-क्या निश्चयतप, निश्चयव्रत व निश्चयश्रुत आजकल सम्भव है ?
उत्तर-निश्चयतप आदि आजकल सम्भव तो है, परन्तु अत्यल्पकाल तक यह परिगति अाजकल रह सकती है, इस कारण मोक्षका कारणभूत शुक्लध्यान भी नही हो पाता ।
प्रश्न १३ - तब फिर आजकल उत्कृष्टसे उत्कृष्ट कौनसा ध्यान हो सकता है ? उत्तर-पाजकल धर्मध्यान तक ही हो सकता है ।
प्रश्न १४-जव मोक्षका कारणभूत शुक्लध्यान नहीं हो पाता, फिर ध्यानके प्रयत्न से क्या प्रयोजन ?
___ उत्तर-~-धर्म्यध्यान भी मोक्षका परम्परया कारणभूत है। इस समय भी ऐसा तो हो ही सकता है कि स्वशुद्धात्मभावनारूप निश्चयतप आदिके होनेपर देवायुका वन्ध कर मरणकर देवगतिमे उत्पत्ति हो। फिर वहाँसे चलकर विदेहक्षेत्रमे अथवा चतुर्थकालमे मनुष्य होकर वहाँसे मुक्ति प्राप्त कर सकते हैं ।
प्रश्न १५- ध्यानके मुख्य सहायक साधन क्या हैं ?
उत्तर-राग्य, तत्त्वज्ञान, निप्परिग्रहता, वशचित्तता, परोपहविजय- ये पांच ध्यानके मुल्य साधक है।
तिता प्रश्न १६-वैराग्यमे तात्पर्य क्या है ? उत्तर- मंझार, देह और भोगोंसे उपेक्षा होनेको वैराग्य कहते है। प्रश्न १५-ससारसे उपेक्षा कैसी होना चाहिये ?
उत्तर-मारका अर्थ है-मन वचन कायकी चेष्टायें, उन्हे अहित, विनश्वर और परभाष भानार उनसे रति हट जाना चाहिये।