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________________ २८४ द्रव्यसंग्रह-प्रश्नोत्तरी टीका उत्तर- जीवत्व, मूर्तत्व, एक संख्यकत्व, सर्वगतत्व, कर्तृत्व, गतिहेतुत्व, स्थितिहेतुत्व, अवगाहनहेतुत्व, परिणमनहेतुत्व, अनन्तप्रदेशत्व, एकप्रदेशित्व, परिणामित्व, क्रियावत्व, विभावशक्तिमत्व, असंख्यातप्रदेशित्व, असख्यातसख्यक, अनन्तसख्यक, नित्यत्व, कारणबहुप्रदेशित्व, भमूर्तत्व, जडत्व, अस्तित्व, वस्तुत्व, द्रव्यत्व, अगुस्लघुत्व, प्रदेशत्व, प्रमेयत्व आदि विशेषतावो मे १-१, २-२, ३.३, १, २, ३, ४, ५, ६ जातिके द्रव्योका यथासम्भव सग्रह होता है। - प्रश्न ४- जीवत्व किन द्रव्योमे पाया जाता है ? उत्तर-जीवत्व केवल जीवद्रव्यमे पाया जाता है, शेप ५ द्रव्योने जीवत्व कभी नहीं हो सकता । क्योकि ज्ञान दर्शनरूप चैतन्य जीवमे हो होता है। • प्रश्न ५- मूर्तत्व किन द्रव्योमे पाया जाता है ? उत्तर- मूर्तत्व केवल पुद्गल द्रव्योमे ही पाया जाता है । रूप, रस, गन्ध, स्पर्श- इन चारोका सद्भावरूप मूर्तत्व शेष ५ द्रव्योमे कभी नहीं पाया जाता। अन ६-एक सख्यक द्रव्य कौन-कौन है ? उत्तर-जो केवल एक ही है, जिनकी सख्या एकसे अधिक है ही नहीं, ऐसे द्रव्य ३ है--- (१) धर्मद्रव्य, (२) अधर्मद्रव्य, (३) आकाशद्रव्य । प्रश्न ७-सर्वगत्व विन द्रव्योमे पाया जाता है ? "उत्तर- सर्वगत्व याने सर्वव्यापीपना केवल आकाशद्रव्यमे है । आकाशद्रव्य सर्वव्यापी है । शेष ५ द्रव्योमेसे कोई भी द्रव्य लोकालोकव्यापक नही है। प्रश्न - कर्तृत्व किन-किन द्रव्योमे पाया जाता है ? उत्तर-अपने-अपने परिणमनसे परिणमना कर्तृत्व है, इस विवक्षासे तो कर्तृत्व ' सर्वद्रव्योमे पाया जाता है, परन्तु कर्तृत्वकी जैसी प्रसिद्धि समझदारकी चेष्टामे है ऐसे कर्तृत्व की अपेक्षा तो कर्ता एक जीवद्रव्य ही है। यह जीव यद्यपि प्रमशुद्ध निश्चयनयकी दृष्टिसे बन्ध, मोक्ष, पुण्य, पाप आदि सर्व भाव और पदार्थोंका अकर्ता है तथापि शुद्ध निश्चयनयसे जीव अनन्तज्ञानादिका कर्ता है, अशुद्ध निश्चयनयसे रागादि भावका कर्ता है, व्यवहारसे घट पट आदिका कर्ता माना गया है। प्रश्न -गतिहेतुत्वकी विशेषता किन द्रव्योमे पाई जाती है ? उत्तर- गतिहेतुत्व केवल धर्मद्रव्यमे ही पाया जाता है । अन्य ५ द्रव्योमे गतिहेतत्व नही है। प्रश्न १०-स्थितिहेतुत्व किन द्रव्योमे पाया जाता है ? उत्तर--स्थितिहेतुत्व केवल अधर्मद्रव्यमे पाया जाता है। . . प्रश्न ११ --अवगाहनहेतुत्व किन द्रव्योमे पाया जाता है ?
SR No.010794
Book TitleDravyasangraha ki Prashnottari Tika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSahajanand Maharaj
PublisherSahajanand Shastramala
Publication Year1976
Total Pages297
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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