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________________ १६२ द्रव्यसग्रह--प्रश्नोत्तरी टीका -उत्तर-- अनन्तज्ञानपरिणत निज प्रात्माका. प्रतिभास होते रहना अनन्तदर्शनका स्वरूप प्रश्न 8-अनन्त आनन्दका क्या स्वरूप है ? उत्तर-जहाँ रच भी प्राकुलता नही रही है और ऐसी परमनिराकुलताका अनन्तज्ञान द्वारा अनुभव हो रहा है, ऐसा सहज शुद्ध परमप्रानन्द अनन्तानन्द कहलाता है । प्रश्न १०-अनन्तवीर्यका क्या स्वरूप है ? उत्तर-समस्त गुणोके अनन्त विकासरूप होनेकी प्रकट हुई शक्तिको अनन्तवीर्य कहते है। प्रश्न ११-उक्त अनन्तचतुष्टय प्रकट होनेपर देहकी क्या अवस्था हो जाती है ? . उत्तर - प्रात्माके अनन्तचतुष्टय प्रकट होनेपर देह परमप्रौदारिक हो जाता है । प्रश्न १२-परमात्माका शरीरसे क्या सम्बन्ध है जिसके कारण परमात्माके देहका वर्णन किया जा रहा है ? उत्तर-निश्चयनयसे तो परमात्मा ही क्या प्रात्मा मात्रके शरीर नहीं है, व्यवहार से ही शरीर माना गया है। सो व्यवहारसे कहा गया वह शरीर जब तक रहना है उसीसे पहिले यदि आत्मा निष्कल हो जाता है तो शरीरकी क्या अवस्था हो जाती है, ऐसा देहकी अवस्थाके निमित्तभूत आत्मा प्रताप बताया गया है। । प्रश्न १३- परमौदारिक शरीर कैसा होता है ? Preहत्तर- अरहन्त होनेसे पहिले वह शरीर सात धातु और अनेक उपधातुप्रो करि सहित था, वही शरीर घातियाकर्मोंका भय हो जानेसे सप्तधातु व उपधातुवोसे रहित स्फटिकमणिके समान निर्मल, हजारो सूर्यको प्रभा तुल्य प्रभाव वाला, किन्तु परको शान्तिका कारण हो जाता है । यही परमौदारिक शरीर कहलाता है। प्रश्न १४-निष्कलङ्कताका वर्णन "रणट्टचदुधाइकम्मो" पदसे हो गया, फिर "सुद्धो" शब्द क्यो कहा गया ? उत्तर- "सुद्धो" शब्दसे अन्य समस्न दोपोका अभाव बताया गया है । प्रश्न १५-वे अन्य दोष कितने और कौन-कौन है जिनका अभाव अरहन्त प्रभुमे है । उत्तर- ये दोष १८ है-(१) जन्म, (२) जरा, (३) मरण, (४) क्षुधा, (५) तृपा, (६) विस्मय, (७) अरति, (८) खेद, (६) रोग, (१०) शोक, (११) मद, (१२) मोह, (१३) भये, (१४) निद्रा, (१५) चिन्ता, (१६) स्वेद पसीना, (१७) राग, (१८) द्वेप।। ये १८ दोष अरहत प्रभुमे नही पाये जाते हैं । इनमेसे कई दोष तो ऐसे है जो अरहत होनेसे पहिले भी नही रहते और कुछ दोष ऐसे है जो अरहन्त होते ही नर हो जाते हैं ।
SR No.010794
Book TitleDravyasangraha ki Prashnottari Tika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSahajanand Maharaj
PublisherSahajanand Shastramala
Publication Year1976
Total Pages297
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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