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________________ गाथा ५० २६१ सुख व अनन्तवीर्यमय है शुभं परम श्रदारिक शरीरमे स्थित है तथा जो शुद्ध है अर्थात् विशेष है वह आत्मा रहन्त है और वह ध्यान करने योग्य है । अथवा असत् ? प्रश्न १- कर्म सत् उत्तर-- कर्म सत् है, अभावरूप नही है | प्रश्न २ - कर्म सत् है तो उसका नाश कैसे हो सकता है, क्योकि सत्का कभी नाश नही होता ? उत्तर - कर्म एक पर्याय है, यह कर्म पर्याय जिस पुद्गलद्रव्यकी है वह पुद्गलद्रव्य कभी भी नष्ट नही हो सकता । बात यह है कि जिम पुद्गलस्कन्धमे कर्म कर्मरूप परिणमनेकी ता है उसी कार्माणवर्गरणाका यह नाम है । इन कर्मवर्गणाश्रोकी कर्मपर्याय होती है और उन्ही का कर्म पर्याय न रहकर अकर्मरूप जाना भी होता है । अरहन्त भगवानके पूर्व में चार घातिया कर्म रूप परिणतवर्गरणाये कर्म पर्यायको छोडकर कर्मपर्यायरूप हो जाते है, वे फिर भविष्य मे कभी भी कर्म पर्यायरूप हो ही नही सकते, यही नाशका अभिप्राय है । प्रश्न ३ – घातिया कर्मोके नाशका उपाय क्या है ? - 7 उत्तर-- शुद्धोपयोगरूप ध्यानके प्रतापसे घातिया कर्मका नाश होता है । यह शुद्धोपयोग निश्चय सम्यग्दर्शन, निश्चय सम्यग्ज्ञान और निश्चय सम्यक्चारित्र रूप है । प्रश्न ४-- घातिया कर्मोंका नाश क्या एक साथ होता है या क्रमसे ? उत्तर- घातिया कर्मोंमे पहिले तो मोहनीय कर्मका क्षय होता है तदन्तर अर्थात् क्षीगामोह होनेपर ज्ञानावरण, दर्शनावरण और अन्तरायका क्षय होता है । प्रश्न ५-- घातिया कर्मोके नाश होनेपर ग्रात्माकी क्या अवस्था होती है ? उत्तर - घातिया कर्मोके नाश होनेपर प्रात्मा अनन्तज्ञान, अनन्तदर्शन, अनन्त प्रानंद और अनन्तवीर्यमय हो जाता है । इन पूर्ण गुणविकासोका निमित्त कारण घातिया कर्मोंका प्रश्न ६ - ज्ञानावरणकर्मके नाशसे किस गुणका पूर्ण विकास होता है ? उत्तर -- ज्ञानावरणकर्मके क्षयसे ज्ञानगुणका पूर्ण विकास होता है । यह विकास अनत ज्ञानरूप है । प्रश्न ७ -- अनन्तज्ञानका क्या स्वरूप है ? उत्तर-- ज्ञानगुणका वह पूर्ण विकास अनन्तज्ञान है, जिसमे लोक लोकवर्ती सर्वद्रव्य ज्ञान हो जाता है तथा भून वर्तमान भविष्यकालीन सर्वद्रव्योकी सर्वपर्यायोका ज्ञान हो जाता है । - प्रश्न ८ - अनन्तदर्शनका क्या स्वरूप है ?
SR No.010794
Book TitleDravyasangraha ki Prashnottari Tika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSahajanand Maharaj
PublisherSahajanand Shastramala
Publication Year1976
Total Pages297
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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