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द्रव्यसग्रह-प्रश्नोत्तरी टीका उत्तर-अ+अ इन दो अक्षरोमे 'प्रकः सवर्णे दीर्घ ' इस सूत्रसे दीर्घ एकादेश हो जाता है सो प्रा बना । पश्चात् पा+आ इन दो अक्षरोमे 'अक. सवर्णे दीर्घ.' इस सूत्रसे दीर्घ
एकादेश हुआ मो प्रा बना। आ+ उ इन दो अक्षरोमे "आद्गुणः इस सूत्रसे गुण एकादेश । हो गया, सो ओ बना । ओ+म्-इन दो अक्षरोमे "विरग्मे वा" इस सूत्रसे म् का अनुस्वार हो गया, सो ओ बन गया।
प्रश्न १३-- क्या इन अक्षरो वाले ये ही मन्त्र है ? ।
उत्तर-इन अक्षरो वाले अन्य भी मन्त्र है, जैसे कि सिद्ध नम , सिद्धाय नम , ॐ नम सिद्ध, ॐ नम. सिद्धेभ्यः आदि ।
प्रश्न १४-उक्त मन्त्रोके अतिरिक्त क्या अन्य मन्त्र भी है ?
उत्तर-सिद्ध चक्र आदि अनेक मत्र है, जो ऋपियो द्वारा यथावसर शास्त्रोमे बताये गये है।
प्रश्न १५-इन मन्त्रोका जाप किस प्रकार किया जाता है ?
उत्तर-मन्त्रोका जाप दो प्रकारसे होता है-(१) अन्तर्जल्प, (२) बहिर्जल्प । अन्त। जल्प तो पदोका अर्थ जानकर उन परमेष्ठियोके गुगास्मरण रूप अन्तरङ्गमे अव्यक्त शब्दके प्राविर्भावको कहते है । बहिर्जल्प उसी तत्त्वको व्यक्त वचनोसे उच्चारण करने को कहते है ।
प्रश्न १६-इन मन्त्रोका ध्यान किस प्रकार करना चाहिये ?
उत्तर-पञ्चपरमेष्ठियोका जो स्वरूप है, गुणविकास है उसकी महिमाका मौनपूर्वक मन वचन कायकी गुप्ति सहित ध्यान करना चाहिये और जिस शक्तिके वे विकास है उस शक्तिको मुख्यतया ध्येय करके उस विकासको स्वभावमे अन्तनिहित करके निर्विकल्पताके अभिमुख होना चाहिये ।
प्रश्न १७-ध्यानका फल क्या है ?
उत्तर-ध्यानका उत्कृष्ट फल कर्मोंकी निर्जरा और नवीन कर्मोंका संवर है तथा गौण फल जितने अशमे जैसा राग भाव वर्त रहा है उस प्रकारका पुण्य कर्मका बन्ध है।
अब ध्यानमन्त्रोके विषयभूत पञ्चपरमेष्ठियोमे से प्रथम परमेष्ठी श्री अरहत भगवान का स्वरूप कहते है
गडचदुघाइकम्मो दसरण हणाणवीरियमइयो।
मुहदेहत्थो अप्पा मुद्धो अरिहो विचितिज्जो ॥५०॥ अन्वय- णट्टचदुधाइकम्मो दसण सुहणाणवीरियमइयो सुहदेहत्यो मुद्धो अप्पा अरिहो, विचितिज्जो।
अर्थ-नष्ट हो गये है चार घातिया कर्म जिसके, जो अनन्तज्ञान, अनन्तदर्शन, अनन्त