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गाथा ४
. सयोगकेवलीके वचनबल, कायबल, आयु व उच्छ्वास-ये चार प्राण होते है व अन्त मे वचनबल रहित ३ व बादमे उच्छ्वास रहित २ प्राण होते हैं । अयोगकेवलोके केवल आयुप्राण होता है।
प्रश्न १६-ये प्राण जीवमय है या अजीवमय ? । उत्तर-इन्द्रियप्राण तो क्षायोपशमिक भाव है, सो यद्यपि जीवका मलिन भाव है। थापि पुद्गल कर्मके निमित्तसे उत्पन्न होते है, सो वे पुद्गलकर्मके कार्य है तथा शेष प्राणोका हुद्गल उपादान हैं । अतः सब प्राण पौद्गलिक है ।।
प्रश्न १७- निश्चयनयसे जीवके प्राण कौन-कौन है ?
उत्तर-शुद्ध निश्चयनयसे ज्ञान, दर्शन, शक्ति सुखके अनन्त विकास प्राश है व परमार्थ शुद्धनयसे चैतन्यप्राण है।
प्रश्न १८--स्पर्धनादि द्रव्येन्द्रिय क्या प्राण नही है ? * उत्तर-अशुद्ध भावेन्द्रियप्राणोका कारण होनेसे ये द्रव्येन्द्रिय भी असद्भूत व्यवहारनयसे प्राण है ? इनका अन्तर्भाव इन्द्रियप्राणमे ही कर लेना चाहिये, परन्तु भावेन्द्रिय न होने से सयोगकेवलोके इन्द्रियप्राण नही मानना चाहिये ।
प्रश्न १६-इन सब कथनोमे उपाय उपेय भी कुछ सिद्ध होता है क्या ? ... उत्तर-उपेयतत्त्व शुद्ध चैतन्यप्राण है । उसकी सिद्धिका उपाय यह है कि अति प्राथ-) मिक अवस्थामे भावेन्द्रियप्राण ब बलप्राणका उपयोग देव, शास्त्र, गुरुकी सेवा, ध्यान मनन स्तुतिमे लयावे, फिर प्राप्त योग्यताको निज अभेद स्वभावमे पहुचनेके प्रयत्नमे लगावे । यद्यपि बुद्धिपूर्वक अभेदस्वभावमे पहुचनेका कार्य नही होता तथापि पहुचनेका यत्न करता है, फिर अति ज्ञानाभ्यास व ज्ञानसस्कार एव योग्यतासे अभेदस्वभावी निज चेतनमे उपयोगकी स्थिरता हो तब सम्पूर्ण प्रात्मबल प्रकट होता है। इस प्रकार जीव अधिकारका वर्णन करके अब उपयोगाधिकारकी गाथा कहते है
उवोगो दुबियप्पो दसण णाण च दसण पदुधा ।
चक्खु अचक्खु ओही दसरणमध केवल गेय ॥४॥ __ अन्वय-उवमोगोणे दुवियप्पो दसण च णाण, दसणं चदुधा णेय चक्खु, अबक्खु, ओही अध केवल दसरण।
अर्थ-उपयोग दो प्रकारका है-१-दर्शनोपयोग, २-ज्ञानोपयोग । दर्शनोपयोग चार प्रकारका जानना चाहिये । १-चक्षुर्दर्शन, २-प्रचक्षुर्दर्शन, ३-अवधिदर्शन और -केवलदर्शन।
प्रश्न १-दर्शनोपयोमका शब्दार्थ क्या है ?