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________________ द्रव्यसग्रह-प्रश्नोत्तरी टीका उत्तर- प्रात्मामे एक दर्शन गुण है, उस गुणके व्यक्त उपयोगात्मक परिणमनको दर्शनोपयोग कहते है । दर्शनोपयोगका दूसरा नाम अनाकारोपयोग भी है । प्रश्न २-अनाकारोपयोगका भाव क्या है ? उत्तर- जिस उपयोगके विषयमे कोई प्राकार, विशेष, भेद, विकल्प न आवे, किन्तु निराकार, सामान्य, अभेद, विकल्परहित जिसका विपय हो उसे अनाकारोपयोग कहते है । प्रश्न ३-चक्षुर्दर्शन किसे कहते है ? उत्तर- चक्षुरिन्द्रियके निमित्तसे. जो ज्ञान उत्पन्न होता है उस ज्ञानको उत्पत्तिके लिये उस ज्ञानसे पहिले जो आत्माकी ओर उपयोग होता है उसे चक्षुर्दर्शन कहते है । इसी प्रकार अचक्षुर्दर्शनमे लगाना, केवल निमित्तमे चक्षुको छोडकर बाकी ४ इन्द्रिया और मनको कहना। प्रश्न ४-क्या ज्ञानसे पहिले दर्शनका होना आवश्यक है ? उत्तर- मतिज्ञानसे पहिले व प्रवधिज्ञानसे पहिले दर्शनका होना आवश्यक है, केवलदर्शन केवलज्ञानके साथ-साथ होता है। कभी-कभी कोई मतिज्ञान पूर्वक भी होता है, उसके लिये पूर्वका दर्शन, दर्शन है । प्रश्न ५-मतिज्ञान व अवधिज्ञानसे पहिले दर्शनोपयोगकी आवश्यकता क्यो होती है ? उत्तर-जब पूर्वज्ञानोपयोग तो छूट गया और नया ज्ञानोपयोग करना है तो बीचमे प्रात्माके अभिमुख होकर नये ज्ञानका बल प्रकट किया जाता है । (जैसे पहिले घटको जान रहा था अब पटको जानना है वो घट ज्ञान छूटनेपर जब तक पटको नही जाना उस बीचमे दर्शनोपयोग होता है अर्थात् आत्मा वहाँ किसी वस्तुको जानता फिर आत्माकी ओर झुकता, फिर किसी वस्तुको जानता, फिर प्रात्माकी ओर झुकता, फिर जानता-यह क्रम चलता) रहता है। प्रश्न ६- श्रुतज्ञान और मनःपर्ययज्ञानसे पहिले दर्शन क्यो नही होता ? . उत्तर- ये दोनो ज्ञान पर्याय-विकल्पको मुख्यता करके जानते है और जो पर्यायविकल्पकी मुख्यता लेकर जानते है उन ज्ञानोसे पहिले दर्शन नही होता । ये दोनो जान मतिज्ञानोपयोगके अनन्तर होते है। प्रश्न ७-केवलज्ञानके साथ ही केवलदर्शन क्यो होता है ? वहा अन्यकी भांति पहिले केवलदर्शन हो और पीछे केवलज्ञान हो, ऐसा क्यो नही होता ? उत्तर-केवली भगवानके अनतशक्ति प्रकट हो गई है, अतः ज्ञानोपयोग व दर्शनोपयोग दोनो साथ-साथ होते है । छद्मस्थ जीवोके अनतशक्ति निही है, अतः साथ-साथ नहीं होते। . प्रश्न -दर्शन और दर्शनोपयोगमे क्या अन्तर है ?
SR No.010794
Book TitleDravyasangraha ki Prashnottari Tika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSahajanand Maharaj
PublisherSahajanand Shastramala
Publication Year1976
Total Pages297
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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