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द्रव्यसग्रह-प्रश्नोत्तरी टीका उत्तर--जिसके उदयसे भव सम्वधी जीवन और क्षयसे मरण हो वह प्रायुप्राण है । प्रश्न ११-पायुप्राणके चार भेद क्यो नही कहे गये ?
उत्तर--चारो आयुवोका सामान्यकार्य उस भवमे अवस्थान करना है, इस साधाररगताके कारण आयुप्राण एक कहा गया है।
प्रश्न १२-मानप्राण किसे कहते है ?
उत्तर-शरीरसे किसी भी प्रकार वायुके आने-जानेको भानप्राण कहते है । जैसे मुख) से श्वाम उच्छ्वास निकलना । रोमछिद्रोसे वायुका आना-जाना । नाडी द्वारा सचरण होना। पृथ्वी मादि सर्व शरीरसे वायुका आना-जाना । वायुकायिक जीवके भी सर्व शरीरसे वायुका) आना-जाना आदि।
प्रश्न १३ - इन चारो प्राणोका क्या कभी विनाश भी होता है ?
उत्तर-पांच इन्द्रियप्राणोका व मनोबलका विनाश तो क्षीणमोह गुणस्थानके अन्तमे हो जाता है । वचनबल वानप्राणका विनाश सयोगकेवलोके अन्तिम अन्तर्मुहूर्तमे होता है व कायबलका विनाश सयोगकेवलीके अन्तमे होता है और प्रायुप्राणका विनाश अयोगकेवलीके अन्तमे होता है।
प्रश्न १४-इन प्राणोके विनाश होनेपर इनके एवजमे क्या किसी विशुद्ध प्राणका विकास होता है?
उत्तर- इन्द्रियप्राणके अभावमे अतीन्द्रिय शुद्ध चैतन्यप्राणका विकास होता है । मनोबलके अभावमे अनन्त वीर्यप्राणका विकास होता है । वचनबल श्वासोच्छ्वास व कायबलके अभावमे प्रदेशोका निश्चलतारूप बलका विकास होता है और आयुप्राणके अभावमे अनादि अनन्त शुद्ध चैतन्यका सर्वथा निश्चल विकास बना रहता है ।
प्रश्न १५-ये प्राण सभी एक साथ होते है या किसी जीवके कम भी होते है ?
उत्तर-एकेन्द्रिय अपर्याप्त जीवके स्पर्शन इन्द्रिय, कायबल, आयु, ये तीन प्राण होते हैं ) पर्याप्तके श्वासोच्छ्वास सहित ४ प्राण होते है (द्वीन्द्रिय अपर्याप्त जीवके दोइन्द्रिय, कायबल व भायु ये ४ प्राण होते है । पर्याप्तके वचनबल व उच्छ्वास सहित ६ प्राण होते है) (श्रीन्द्रिय अपर्याप्तके ३ इन्द्रिय, १ बल, आयु, ये ५ प्राण होते है । पर्याप्तके वचनबल व उच्छ्वाससहित ७ प्राण होते है) (चतुरिन्द्रिय अपर्याप्तके ४ इन्द्रिय, १ बल, आयु ये ६ प्राण होते है । पर्याप्तके बचनबल व उच्छ्वास सहित ८ प्राण होते है) (असैनी पञ्चेन्द्रिय अपर्याप्त के ५ इन्द्रिय, १ बल, आयु ये ७ प्रारण होते है । पर्याप्तके विचनबल, उच्छ्वास सहित ६ प्राण होते है । (सनी पञ्चेन्द्रिय अपर्याप्तके ५ इन्द्रिय, १ बल, प्रायु ये ७ प्राण होते है । पर्याप्तके मनोबल, वचनबल व उच्छ्वास सहित १० प्राण होते है) ,