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गाथा ३ होनेसे ग्रहण हो गया, यह "तिक्काले" शब्दका भावार्थ है । इससे यह सिद्ध हुआ कि मुक्त जीवके इस समय ये प्राण नही है वो भी भूतकालमे थे, सो व्यवहारनयसे वह भी जीव है ।
प्रश्न २- इन्द्रियप्राण किसे कहते है ? उत्तर-द्रव्येन्द्रियोके निमित्तसे उत्पन्न हुआ क्षायोपशमिक भाव इन्द्रियप्रागा है । प्रश्न ३–इन्द्रियप्रारण और इन्द्रियमे क्या अन्तर है ?
उत्तर-इन्द्रियप्राण तो क्षायोपशमिक भाव है, परन्तु इन्द्रियसे द्रव्येन्द्रियका ग्रहण होता है । इसी कारण सयोगकेवलीके. इन्द्रियप्राण नहीं है, परन्तु ये पचेन्द्रिय माने ही गये है.।
प्रश्न ४–इन्द्रियप्राण कितने प्रकारका है ?
उत्तर- इन्द्रियप्राण ५ प्रकारका है-(१) स्पर्शनेन्द्रियप्राण, (२) रसनेन्द्रियप्राण, (३) घ्राणेन्द्रियप्राण, (४) चक्षुरिन्द्रियप्राण, (५) श्रोत्रेन्द्रियप्राण ।
प्रश्न ५-इन इन्द्रियप्राणोके लक्षण क्या है ?
उत्तर--स्पर्शन इन्द्रियके निमित्तसे जो क्षायोपशमिक भाव उत्पन्न हुआ वह स्पर्धनेन्द्रिय प्राण है । इसी प्रकार रसनेन्द्रिय आदिके भी अलग-अलग लगा लेना चाहिये।
प्रश्न ६-बलप्राण किसे कहते है और वे कितने प्रकारके है ?
उत्तर-अनन्त शक्तिके एक भाग प्रमाण मन, वचन, कायके निमित्तसे उत्पन्न हुए बलको बलप्राण कहते है । ये ३ प्रकारके है-(१) मनोबल, (२) वचनबल, (३) कायबल ।
प्रश्न ७- इन बलप्राणोके लक्षण क्या है ?
उत्तर-मनके निमित्तसे उत्पन्न हुए वीर्यके विकासको मनोबल प्राण कहते है । इसी प्रकार वचन और कायबलमे भी अलग-अलग लगा लेना चाहिये ।
प्रश्न -बल, प्राण, गुप्ति, योग, पर्याप्ति ये मन, वचन, कायके होते है, इनमे अन्तर क्या है ?
उत्तर-वीर्यके विकासको बलप्राण कहते है । मन, वचन, कायको प्रवृत्तिके विरोध को गुप्ति कहते है । मन, वचन, कायके निमित्तसे प्रात्मप्रदेश 'परिस्पदके लिये जो यत्न होता है उसे योग कहते है। मनोवर्गणा, भाषावर्गणा, प्राहारबर्गणाको ग्रहण करनेकी शक्तिकी पूर्णताको पर्याप्ति कहते है।
प्रश्न - मन, वचन, कायकी प्रवृत्तिके निरोधको जब गुप्ति कहा तो इसमे वीर्य गुण का विकास रोक दिया गया, फिर गुप्ति उपादेय नही रहेगी ? ।
उत्तर-अशुद्ध बलको रोककर आत्मबलके विकासको गुप्ति बढाती है, इसलिये परमार्थबलके विकासका कारण होनेसे गुप्ति उपादेय है। .
प्रश्न १०–अायुप्राण किसे कहते है ?