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________________ गाथ। ३५ १६९ है, जिससे कर्ममल निर्जरित करके याने दूर करके परमसुखी हो जाता है" इस प्रकार निर्जरा तत्त्वके चिन्तवन करने व स्वभावतः परममुक्त निजचैतन्यस्वभावकी भावना करनेको निर्जरानुप्रेक्षा कहते है। प्रश्न २१४-निर्जरानुप्रेक्षासे क्या लाभ होता है ? उत्तर-शुद्धोपयोगरूप निर्जरा परिणामोके बलसे एक देश मुक्त हो-होकर सर्वदेश कर्मोंसे मुक्त हो जाता है । इस रहस्यके ज्ञातावोको निर्जरानुप्रेक्षासे कल्याणमार्गकी इस प्रगति के लिये अन्तःप्रेरणा मिलती है। प्रश्न २१५--लोकानुप्रेक्षा किसे कहते है ? उत्तर-लोककी रचनाप्रोका विचार करते हुए लोकके ऐसे-ऐसे स्थानोमे यह जीव मोहभाववश अनन्त बार उत्पन्न हुना, ऐसे चिन्तवन करने और स्वभावतः अजन्मा एव अनादिसिद्ध चैतन्यस्वरूप निज निश्चय लोककी भावना करनेको लोकानुप्रेक्षा कहते है। प्रश्न २१६- लोकको किसने बनाया ? उत्तर- लोक समस्त द्रव्योके समूहको कहते है । समस्त द्रव्य जितने आकाशमे देखे जाते है, पाये जाते है उतने अाकाशमे रहने वाले द्रव्यसमूहके पिण्डको लोक कहते है । समस्त द्रव्य स्वतःसिद्ध है, अतः लोक भी स्वतःसिद्ध है । इसे किसीने नही बनाया अथवा सर्वद्रव्य अपना-अपना परिणमन करते रहते है, सो सभी द्रव्योने लोक वनाया। प्रश्न २१७- लोकका प्राकार क्या है? उत्तर- सात पुरुष एकके पीछे एक-एक खडे होकर पैर पसारे हुये और कमरपर हाथ रखे हुये स्थित हो उन जैसा आकार इस लोकका है । केवल ।मुख जितना आकार छोड दिया जावे। प्रश्न २१८- लोकका विस्तार क्षेत्र कितना है ? उत्तर- लोकका विस्तार ३४३. धनराजू है । एक राजू असख्यात योजनोका होता है । एक योजन दो हजार कोशका होता है । एक कोश करीब ढाई मीलका होता है । लोक का विस्तार लोकके तीन भागोमे बाटकर समझना चाहिये । प्रश्न २१६- लोकके तीन भाग कौन-कौन है ? उत्तर-- लोकके तीन भाग ये है-(१) अधोलोक, (२) मध्यलोक, (३) ऊर्ध्वलोक । प्रश्न २२०-अधोलोक कितने भागको कहते है ? उत्तर- जैसे दृष्टान्तमे मनुष्यकी नाभिसे नीचेका जितना विस्तार है, ऐसे ही लोक के ठीक मध्यसे नीचेका जितना विस्तार है उतने भागको अधोलोक कहते है। प्रश्न २२१-अधोलोकका कितना विस्तार है ?
SR No.010794
Book TitleDravyasangraha ki Prashnottari Tika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSahajanand Maharaj
PublisherSahajanand Shastramala
Publication Year1976
Total Pages297
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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