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________________ द्रव्यसंग्रह-प्रश्नोत्तरी टीका उत्तर- अधोलोकका उत्सेध ऊपरसे नीचे ७ राजू है। बिल्कुल नीचे पूर्वसे पश्चिम तक आयाम ७ राजू है और ऊपर क्रमसे घट-घटकर एक राजू रह जाता है । दक्षिणसे उत्तर मे सर्वत्र विष्कम्भ ७-७ राजू है । अतः भूमि ७ मे मुख १ जोडनेसे ८ हुये, इसके प्राधे ४ राजू, यह चौडाईका एवरेज हुआ । इसमे लम्बाई ७ राजूका गुणा करनेसे ४४७ = २८हुआ, इसमे ७ राजू विष्कम्भका (दक्षिण उत्तर वालाका) गुणा करनेसे २८४७ = १६६ धन राजू अधोलोकका विस्तार है।। प्रश्न २२२-- मध्यलोकका विस्तार कितना है ? उत्तर- लोकके मध्यभागसे ऊपर एक लाख ४० योजन ऊँचे तक न तिर्यगरूपमे चारो ओर असख्यात योजनो तक याने पूर्वसे पश्चिम एक राजू व उत्तरसे दक्षिण नक सात राजू प्रमाण मध्यलोक है। प्रश्न २२३- ऊर्ध्वलोकका कितना विस्तार है ? उत्तर-- ऊर्ध्वलोकका उत्सेध ७ राजू है । मध्यलोकके ऊपर एक राजू आयाम है व ऊपर ३।। राजू जाकर ५ राजू आयाम है तथा ३॥ राजू और ऊपर जाकर एक राजू आयाम है । विष्कम्भ सर्वत्र ७-७ राजू है । यहाँ उत्सेधका अर्थ ऊँचाई है । आयामका अर्थ पूर्व पश्चिमका विस्तार है । विष्कम्भका अर्थ दक्षिण उसका विस्तार है । इसका क्षेत्रफल यह है५+१% ६ -२३४ % १०॥४७ = ७३॥७३॥ = १४७ धनराजू कललोक विस्तार है। प्रश्न २२४- तीनो लोकोका सम्मिलित विचार कितना हुआ ? उत्तर-अधोलोकका धनराजू १६६ व ऊर्ध्वलोकका धनराजू १४७, दोनोको मिलाकर ३४३ धनराजू विस्तार हुआ । यही तीनो लोकोका सम्मिलित विस्तार है। प्रश्न २२५-- मध्यलोकका विस्तार क्यो नहीं जोडा गया है ? उत्तर-- मध्यलोकका उत्सेध राजूके मुकाबले न कुछ है, इसलिये इसे पृथक्से गिनती मे नही लिया जा सकता है । यह न कुछ जैसा अश ऊर्ध्वलोक के बताये गये मापमे सबसे नीचे का अश है। प्रश्न २२६- अधोलोकमे कैसी रचनायें है ? उत्तर-दक्षिण व उत्तरमे तीन-तीन राजू क्षेत्र छोडकर लोकके मध्यमे १४ राजू उत्सेधकी एक त्रसनाली है, अधोलोककी सनालीके भागमे ७ नरकोकी रचना है । नरक ७ पृथ्वियोमे है। प्रश्न २२७- नरकको ७ पृथ्वियां किस क्रमसे व्यवस्थित है ? उत्तर- इनमे सबसे ऊपर मेरुपर्वतकी आधारभूत रत्नप्रभा नामकी पृथ्वी है । इसका
SR No.010794
Book TitleDravyasangraha ki Prashnottari Tika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSahajanand Maharaj
PublisherSahajanand Shastramala
Publication Year1976
Total Pages297
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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