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________________ गाथा ३५ १८१ उत्तर-- पाठ प्रकारकी निकित्सामे से एक या अनेक चिकित्साके द्वारा उपकार करके या उनका उपदेश करके आहारादि लेनेको चिकित्सादोष कहते है । चिकित्साये ८ ये है-- (१) बालचिकित्सा, (२) अङ्ग चिकित्सा, (३) रसायनचिकित्सा, (४) विपचिकित्सा, (५) भूतापनदन, (६) क्षारनन्त्र (७) शलाकाचिकित्सा, (८) शल्यचिकित्सा । प्रश्न ८८-चिकित्साकर्ममे क्या दोष होता है ? उत्तर- चिकित्सावो करि भोजन करनेमे सावद्यादि अनेक दोष होते है। प्रश्न ८६-- विद्यादोष किसे कहते है ? उत्तर- होम जप आदि द्वारा साधित विद्यावोको बुलाकर उनसे प्राप्त हुई आहार औषधि ग्रहण करनेको अथवा दातारको विद्या देनेकी आशा देकर आहारादि ग्रहण करनेको विद्योत्पादन दोष कहते है। प्रश्न ६०-इसमे क्या दोष आता है ? उत्तर-- विद्यादोषमे स्वरूपकी ,असावधानी, आत्मविश्वासका अभाव अादि दोष आते है। प्रश्न ६१-मन्त्रदोष किसे कहते है ? उत्तर-गुरुमुखसे अध्ययन किये हुये और सिद्ध हुये मन्त्रसे देवताका आमन्त्रण करके उनसे सम्पन्न हुए आहार ग्रहण करनेको अथवा सुखदायक मन्त्रको आशा देकर दातारसे आहार ग्रहण करनेको मन्त्रदोष कहते है । प्रश्न ६२-- इसमे क्या दोप है ? उत्तर-- विद्यादोषकी तरह इसमे भी अनेक दोष है । प्रश्न ६३-- चूर्णदोप किसे कहते है ? । उत्तर-- दातारके लिये भूषाचूर्ण व अजनचूर्णको सम्पादित करके उसके यहां आहार ग्रहण करनेको चूर्णदोष कहते है । प्रश्न ६४- इसमे क्या दोप होता है ? उत्तर- आजीविकावत् प्रारम्भका दोष इसमे होता है। प्रश्न ६५-- वशदोष किसे कहते है ? उत्तर-- जो जिसके वशमे न हो उसे वशमे करनेका उपाय बताकर या वैसी योजना कर या परस्पर वियुक्त हुये स्त्री पुरुषोका मेल कराकर या उपाय बताकर भोजन ग्रहण करने को वशदोष कहते है। प्रश्न ६६- इस दोपमे क्या अनर्थ है ? उत्तर- निर्दयता, पीडोत्पादन, रागवृद्धि, लज्जाकर्म, ब्रह्मचर्यके अतिचार आदि अनेक
SR No.010794
Book TitleDravyasangraha ki Prashnottari Tika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSahajanand Maharaj
PublisherSahajanand Shastramala
Publication Year1976
Total Pages297
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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