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________________ १८० जाते है | द्रव्यसंग्रह प्रश्नोत्तरी टीका उत्तर- इसमें दोनता, लिप्सा, कल्याणमागमे प्रमाद आदि दोप आते है । प्रश्न ७५ - क्रोधदोप किसे कहते है ? उत्तर- क्रुद्ध होकर भोजनादि प्रबन्ध कराने व ग्रहण करनेको क्रोधदोष कहते है । प्रश्न ७६- इसमे क्या दोष आता है ? उत्तर -- सयमकी हानि, उन्मार्गका प्रसार आदि दोप प्राते है । प्रश्न ७७ - मानदोप किसे कहते है ? उत्तर- अभिमानके वश होकर आहार ग्रहण करनेको मानदोप कहते है । प्रश्न ७८- इसमे क्या दोष श्राता ? उत्तर - रसगौरव, सयमहानि, उन्मार्ग आदि दोष आते है । प्रश्न ७६-- मायादोष किसे कहते है ? उत्तर- मायाचार, छल, कपट सहित भोजनादि ग्रहण करनेको मायादोष कहते है । प्रश्न ८०- इसमे क्या दोप आता है ? उत्तर -- सम्यक्त्वहानि, सयमहानिके दोप मायादोषमे उत्पन्न हो जाते है । प्रश्न ८१-- लोभदोष किसे कहते है ? उत्तर- क्षुब्ध परिणामोसे श्राहारादि ग्रहण करनेको लोभदोष कहते है । प्रश्न ८२-- इस दोपसे क्या अनर्थ होता है ? उत्तर-- लोभदोषसे मूल गुणमे हानि, स्वभावदृष्टिकी अयोग्यता हो जाने के अनर्थ हो प्रश्न ८३- पूर्वस्तुतिदोप किसे कहते है ? उत्तर - दातारकी पहिले प्रशसा करके अपनी ओर आकर्षित कर दातारसे भोजनादि ग्रहण करनेको पूर्वस्तुतिदोष कहते है । प्रश्न ८४-- इस दोषसे क्या अनर्थ होता है ? उत्तर-- इसमे परमुखापेक्षा कृपणता, श्रात्मगौरवनाश आदि अनर्थ होते है । प्रश्न ८५-- पश्चात्स्तुतिदोप किसे कहते है ? उत्तर-- आहार ग्रहण करनेके बाद दाताकी प्रशसा स्तुति करना, सो पश्चात्स्तुति नामक दोष है । प्रश्न ८६ - इस दोषसे क्या अनर्थ है ? उत्तर-- आगे भी भोजन प्रबन्ध हमारा अच्छा रहे, इस अभिप्राय से यह दोष होता है । इससे निदान, कृपणता, आत्मगौरवनाश आदि अनर्थं होते है । प्रश्न ८७ -- चिकित्सादोप किसे कहते है ?
SR No.010794
Book TitleDravyasangraha ki Prashnottari Tika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSahajanand Maharaj
PublisherSahajanand Shastramala
Publication Year1976
Total Pages297
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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