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________________ गाया ३५ रखकर अपने घर या परगृह कही रख देनेको न्यस्त दोप कहते है। प्रश्न २६- न्यस्तमे क्या दोष हो जाता है ? उत्तर- इसमे दो दोष हो जाते है-- एक तो नया आरम्भ हुआ और फिर उसमे से यदि कोई दूसरा दातार उसको दे तो उसमे गडबडी भी हो सकती है। प्रश्न ३०- प्रादुप्कृत दोष किसे कहते है ? उत्तर-प्रादुष्कृत दोप दो प्रकारसे होता है- (१) सक्रम, (२) प्रकाश । साधुके घर आ जानेपर भोजनके पात्र आदिको एक जगहसे दूसरी जगह ले जाना, सो संक्रम प्रादुकृत है। साधुके घर आ जानेपर किवाड मडप आदि दूर करना, भस्म या जलादिकसे बर्तनादिको साफ करना, दीपक जलाना आदि प्रकाश दोप है । प्रश्न ३१- प्रादुष्कृतमे दोप किस कारणसे है ? उत्तर-इसमे नैमित्तिक प्रारम्भ व ईर्यापथादिकमे हानिका दोष पाता है । प्रश्त ३२-क्रीत दोष किसे कहते है ? उत्तर- जब साधु भिक्षाके अर्थ घर आवे तब गौ आदिक सचित्त द्रव्य या सुवर्ण चाँदी आदि अचित्त द्रव्य देकर भोजन लाया जावे, उसे क्रीत दोप कहते है । प्रश्न ३३-क्रीत दोपमे क्या हानि होती है ? उत्तर- इसमे नैमित्तिक प्रारम्भ व विकल्पोका बाहुल्य होता है। प्रश्न ३४- प्रामित्य दोष किसे कहते है ? उत्तर- प्रामित्य दोष दो प्रकारका होता है- (१) वृद्धिमत् और (२) अवृद्धिमत् । व्याजपर उधार लाये हुये अन्नको वृद्धिमत् प्रामित्य कहते है और विना ब्याजके उधार लाये अन्नको अवृद्धिमत् प्रामित्य कहते है। इन दोनो प्रकारके प्रामित्यके आहार देनेको प्रामित्य दोष कहते है। प्रश्न ३५- प्रामित्यके आहारमे क्या दोष हुआ? उत्तर-उधार लाने और उसके चुकानेमे दाताको अनेक कष्ट उठाने पडते है, ऐसा कष्टसाध्य आहार माधुरीकी वृत्ति वाले साधुके अयोग्य है । ऐसा आहार करनेमें अदयाका दोष उत्पन्न होता है। प्रश्न ३६-- परिवर्तित दोष किसे कहते है ? उत्तर- भिक्षार्थ साधुके प्रानेपर किमीने किसी भोज्य पदार्थके बदन्नेमे कोई अन्य भोज्य पदार्थ तेनेको परिवतित दोप कहते है। प्रश्न ६७- परिवर्तित ग्राहारमे क्या दोष हो जाता है ?
SR No.010794
Book TitleDravyasangraha ki Prashnottari Tika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSahajanand Maharaj
PublisherSahajanand Shastramala
Publication Year1976
Total Pages297
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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