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________________ १७४ द्रव्यसग्रह-प्रश्नोत्तरी टीका उत्तर-- पूति दोपके दो प्रकार है-- (१) अप्रामुमिश्रण, (२) पूतिकर्मकल्पना । प्रामुक वस्तुमे अप्रामुक वस्तु मिला देनेको अप्रासुमिश्रण कहते है और ऐसी कल्पना करनेको "कि इस बर्तन द्वारा अथवा इस बर्तनमे पके हुए भोजनका या अमुक भोजनका दान जब तक साधुवों को न हो जाय तब तक इसका उपयोग नहीं किया जाय" पूतिकर्मकल्पना दोप कहते है । इसी तरह चक्की, अोखली, जूता आदिके सम्बन्धमे भी कल्पना करनेको भी पूतिकर्मकल्पना दोप कहते है। ' प्रश्न २१- पूतिमे क्या दोष हो जाता है ? उत्तर-इसमे अप्रामुमिश्रणमे तो हिसाका दोप तथा पूतिकर्मकल्पनामे साधुके निमित्त के सम्बन्धका दोप हो जाता है। प्रश्न २२-मिश्रदोप किसे कहते हैं ? उत्तर- प्रासुक भी पाहार हो तो भी यदि पाखडियो और ग्रहस्थोके साथ साथ साधुवो को देनेकी बुद्धिसे बनाया हुआ भोजन हो तो उसे मिश्रदोप सहित कहते हैं । प्रश्न २३-इस मिश्रमे क्या दोष हो जाता है ? उत्तर- इसमे असयमियोसे स्पर्श, दीनता व अनादर आदि होनेका दोष हो जाता है। प्रश्न २४-प्राभृत दोष किसे कहते है ? उत्तर-प्राभृत दोप दो प्रकारके होते हैं- एक तो वादरणीभृत और दूसरा सूक्ष्मप्राभृत । ऐसा सकल्प करके कि मैं अमुक माह आदिकी अमुक तिथिको अतिथिसविभागवत पालूगा, फिर उस तिथिके बदले पहिले या बादमे दान देना, सो वादरप्राभृत दोष है। ऐसा सकल्प करके कि दिनके पूर्वभागमे उत्तरभागमे पात्र दान करू गा, फिर उस समयके बाद या पहिले पात्र दान करना सूक्ष्मप्राभृत दोप है। प्रश्न २५-प्राभृतदोषमे क्या दोप हो जाता है ? उत्तर- इस वृद्धि हानिसे परिणामोकी सक्लेशता उत्पन्न हो जाती है। प्रश्न २६- बलिदोष किसे कहते है ? उत्तर- यक्ष पित्रादि देवताके लिये बनाये हुये आहारमे से बचा हुआ पाहार यतियो को देना बलिदोष है तथा बचे हये अर्घ्य जलादिकसे यतियोकी पूजा करना बलिदोष है। प्रश्न २७-बलिदोपमे किस दोपकी सिद्धि है। उत्तर- इसमे सावद्य दोषकी सिद्धि है।। प्रश्न २५-न्यस्त दोष किसे कहते है? उत्तर-जिस बर्तनमे भोजन बनाया गया हो, उसमेसे निकालकर कटोरी आदिमे
SR No.010794
Book TitleDravyasangraha ki Prashnottari Tika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSahajanand Maharaj
PublisherSahajanand Shastramala
Publication Year1976
Total Pages297
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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