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जय प्रमई राहत
गाथा ३५
१८३ उत्तर-साधूचित कर्मके लिये सूर्यप्रकाशमे चार हाथ आगे जमीन देखते हुए उत्तम । भावसहित चलनेको ईसिमिति कहते है।
प्रश्न १२- भापासमिति विसे कहते है ? उत्तर-हित मित प्रिय वचन बोलनेको भाषासमिति कहते हैं । प्रश्न १३-ऐषणासमिति किसे कहते है ?
उत्तर-- आत्मचर्याकी साधनाका भाव रखने वाले साधुकी ४६ दोपरहित व १४/ मलरहित एव अध कर्म और दोषरहित तथा ३२ अन्तराय टालकर निर्दोष आहार करनेकी चर्याको ऐषणासमिति कहते है।
प्रश्न १४- आहारसम्बन्धी ४६ दोप कौन-कौन होते है ।
उत्तर-उद्गमदोष १६, उत्पादनदोष १६, अशनदोष १०, मुक्तिदोष ४, इस प्रकार ४६ दोष आहारसम्बन्धी होते है ।
प्रश्न १५- उद्गमदोष कौन-कौन है ?
उत्तर-(१) उद्दिष्ट, (२) साधिक, (३) पूति, (४) मिश्र, (५) प्राभृत, (६) बलि, (७) न्यस्त, (८) प्रादुष्कृत, (६) क्रीत, (१०) प्रामित्य, (११) परिवर्तित, (१२) निषिद्ध, (१३) अभिहृत, (१४) उद्भिन्न, (१५) आच्छेद्य, (१६) आरोह-- ये १६ उद्गमदोष है।
प्रश्न १६- उद्दिष्टदोष किसे कहते है ?
उत्तर- किसी भी वेश वाले गृहस्थो, सर्व पाखण्डियो, सर्वपार्श्वस्थो या सर्वसाधुवोंके उद्देश्यसे बनाये हुए भोजनको उद्दिष्ट कहते है ।।
प्रश्न १७-उद्दिष्टमे क्या दोष हो जाता है ?
उत्तर- श्रावककी प्रवृत्ति अतिथिसविभागकी होती है। श्रावक अपने आहारको स्वयं इस प्रकार बनाता है कि वह एक पात्रको दान देकर भोजन किया करे । मुनि इस प्रकार श्रावकके लिये बने हुए भोजनका अधिकारी हो सकता है । इसके विपरीत बने हुए भोजनमे प्रारम्भ विशेष होनेसे उस उद्दिष्ट भोजनके पाहारमे सावद्यका दोष हो जाता है।
प्रश्न १८- साधिक दोष किसे कहते है ?
उत्तर- यदि दाता अपने लिये पकते हुये भोजनमें मुनियोको दान देनेके अभिप्रायसे और अन्नादि डाल देनेको साधिक दोष कहते है अथवा भोजन तैयार होनेमे देर हो तो पूजा . या धर्मादिक प्रश्नके छलसे साधुके रोक लेनेको साधिक दोष कहते है ।
प्रश्न १४-साधिकमे क्या दोष हो जाता है? उत्तर- इस प्रारम्भमे भी साधुका निमित्त हो जानेका दोप हो जाता है। प्रश्न २० -पूति दोष किसे कहते है ?
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