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द्रव्यमंग्रह-प्रश्नोत्तरी टीका उत्तर-इसमे भी दाताको मकानण होता है, अतः उस पाहारमे भी अदयाका टेप उत्पन्न हो जाता है।
पश्न ३-निपिद्ध दोष शिरी कहते है?
उत्तर--कोई चीज किसी गना करनेपर भी साधुवोको ग्राहारके लिये दी जावे नो उसे निपिद्ध दोग कहते है । निषेधकोके भेदसे इनके ६ भेद हो जाते है। निषेधक ६ प्रकारके ये है- (१) व्यक्त ईश्वर, (२) अव्यक्त ईश्वर, (३) उभय ईश्वर, (४) व्यक्त अनीश्वर, (५) अध्यक्त अनीश्वर, (६) उभय अनीश्वर । निरपेक्ष अधिकारीको व्यक्तईश्वर व सापेक्ष अघिकारीको अध्यक्तईश्वर व गापेक्ष निरपेक्ष अनिकारोको या मंयुक्त व्यक्तियोको उभयईश्वर कहते है । इसी प्रकार अनीश्वर (अनधिकारी) याने नौकर आदिमे भी लगाना।
प्रश्न ३६-निपिनमे क्या दोग प्राता है ? उत्तर-दीनता, अशिष्टता प्रादि अनेक दोप पाते है। प्रश्न ४०-- अभिहत दोष किसे कहते है ?
उत्तर- लाइनमे स्थित मान मकानोको (एक दाताका व तीन एक ओरके व तीन दूसरी पोरके) छोडकर वाकी अन्य किसी 'स्थानसे चाहे मौहल्ला हो या गांव हो या परगाँव या परदेश, आये भोज्य पदार्थोको अभिहत कहते है। अभिहत पदार्थोके आहारको अभिहत दोप कहते है।
प्रश्न ४१-- अभिहन याहारमे क्या दोष पाता है ? उत्तर-- इसमे ईर्यापथशुद्धि नहीं हो सकती है, अतः जोहिसाका दोष आता है। प्रश्न ४२-- उद्भिन्न दोप किसे कहते है ?
उत्तर-- घी, गुड़, किशमिश आदि कोई वस्तु किसी डिव्वे आदिमे पैक हो, डिब्बेका मुख मिट्टी आदिसे वन्द हो यो सील, मोहर लगी हो उसे खोलकर उस चीजके देनेको उद्भिन्न दोष कहते है।
प्रश्न ४३-- उद्भिन्न बाहारमे क्या दोप है ?
उत्तर-- इसमे जीवदयाकी सावधानी नही हो सकती व तुरन्त खोलकर देनेमे उस वस्तुका शोधन भी ठीक नहीं हो सकता, चीटी आदिका प्रवेश हो तो उसका वारण कठिन है।
प्रश्न ४४- आच्छेद्य दोष किसे कहते है ?
उत्तर- राजा, मत्री ग्रादि बडे पुरुपोके भयसे श्रावक आहारदान करे तो उसे पाच्छेद्य दोष कहते।
प्रश्न ४५-- प्राच्छेद्यमे क्या दोष होता है ? उत्तर- जबरदस्ती बिना अनुरागका भोजन लिये जानेका दोष आता है, यह गृहस्थके