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________________ द्रव्यमग्रह-प्रश्नोत्तरी टीका है । इस तरह मिरमा इस शब्दमे मन, वचन, काय तीनोको संभालकर वदन करना मूचित हुआ प्रश्न २०-द्रव्यकर्म, भावकर्म, नोकर्म नीनोसे रहित परमात्मा तो सिद्ध परमेष्ठी हैं जो अत्यन्त उत्कृष्ट है उन्हे नमस्कार करना चाहिये था ? उत्तर-यद्यपि यह सत्य है कि सर्वोत्कृष्ट देव सिद्ध परमेष्ठी हैं और वे प्रागधनीय है तथापि उनका भी परिज्ञान एव विविध सम्यग्ज्ञान श्री जिनेन्द्रदेवके प्रसादमें हुप्रा है तो उनके उपकारके स्मरणके लिये अहंत परमेष्ठीको नमस्कार किया है तथा जितने भी सिद्ध परमेष्ठी हुए हैं वे भी पहिले अरहत परमेष्ठी थे, सो उनकी पूर्वावस्थाके नमस्कारमे सिद्धप्रमु का नमस्कार तो. सिद्ध ही है। प्रश्न २१-विवेको ननोकी शासनप्रवृत्ति सम्बन्ध, अभिधेय, प्रयोजन, शक्यानुष्ठान बिना होती नही है । यह! ये चारो किस प्रकार हैं ? उतर-सम्बन्ध तो यहाँ व्याख्यान व्याल्येयका है । व्याख्यान तो द्रव्य व परमात्मस्वरूप आदिके विवरणका है और व्याख्येय उसके वाचक सूत्र हैं। मभिधेय परमात्मस्वरूप आदि वाच्य अर्थ हैं। प्रयोजन सब द्रव्योका परिज्ञान है और निश्चयसे ज्ञानानदमय निज स्वरूपका सवेदन, ज्ञान है.और अन्तमे पूर्ण शुद्ध स्वरूपकी प्राप्ति है । शक्यानुष्ठान तो यह है ही, क्योकि ज्ञानमय प्रात्मा ज्ञानरूप मोक्षमार्गको साधे, इसमे कोई कठिनाई भी नहीं है । प्रश्न २२-~~-क्या ग्रन्यके आदिमे मगलाचरण करना आवश्यक है ? उत्तर-यद्यपि परमात्माका व्याख्यान स्वय मगल है तथापि जिनेन्द्रदेवके मूल परोपकारसे सन्नार्गको पानेवाले अतरात्मासे उनका स्मरण हुए विना रहा ही नहीं जा सकता,) न्योकि महापुरुप निरहकार और कृतज्ञ होते हैं। प्रश्न २३-मगलाचरणविधानसे क्या अन्य भी कोई फल व्यक्त होते हैं ? उत्तर--मगलाचरणके अन्य भी फल हैं-१-नास्तिकताका परिहार । २-शिष्टाचार की पालना। -विशिष्ट पुण्य । ४-शास्त्रको निर्विघ्न समाप्ति । '५-कृतन्नताका विकास । ६-निरहकारताकी सूचना । ७-ग्रन्थको प्रामाणिकता। -ग्रन्थ पढने सुनने वालोकी श्रद्धाकी वृद्धि प्रादि। इस प्रकार श्रीमज्जिनेन्द्रदेवको नमस्कार करके श्रीमन्नेमिचन्द्राचार्य अब जीवद्रव्यका साधिकार वर्णन करते है जीवो उवमोगमो अमुत्ति कत्ता सदेहपरिमाणो । भोत्ता ससारत्थो सिदो सो विस्ससोढूगई ॥२॥ अवय-सो, जीवो उवमोगमनो अमुत्ति कत्ती सदेहपरिमाणो भोत्ता ससारत्यो सिदो
SR No.010794
Book TitleDravyasangraha ki Prashnottari Tika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSahajanand Maharaj
PublisherSahajanand Shastramala
Publication Year1976
Total Pages297
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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