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________________ गाथा १ उत्तर-जितनी दृष्टिया है उतने प्रकारसे वदन है । उनको संक्षिप्त करनेपर ये पाँच दृष्टिया प्राप्त होती है-(१) व्यवहारनय, (२) अशुद्धनिश्चयनय, (३) एकदेशशुद्धनिश्चयनय, (४) सर्वशुद्धनिश्चयनय, (२) परमशुद्धनिश्चयनय । प्रश्न १२-व्यवहारनयसे किसको वदन किया जाता है ? उत्तर-व्यवहारनयसे (अनतज्ञान, अनतदर्शन, अनतसुख, प्रनतशक्ति-सम्पन्न घातिकर्मक्षयसिद्ध तीर्थंकर परमदेवको नमस्कार किया है ) प्रश्न १३-अशुद्धनिश्चयनयसे किसको बंदन हुमा ? उत्तर-तीर्थकर परमदेवके लक्ष्यके निमित्तसे जो प्रमोद व भक्तिभाव हुआ है उस भावको उस भावमे परिणत होने रूप वदन हुआ है। प्रश्न १४-एकदेशशुद्धनिश्चयनयसे किसका वंदन हुआ ? उत्तर--इस नयसे निज आत्मामे ही जो शुद्धोपयोगका अश प्रकट हुआ है उसके उपयोगरूप वदन हुआ है। प्रश्न १५--सर्व शुद्धनिश्चयनयसे किसको वदन हुआ है । उत्तर-इस नयसे पूर्ण शुद्धपर्याय गृहीत होती है, वह वंदकके है नही और जब होगी तब केवल शुद्ध परिणमन है, वहाँ मात्र ज्ञाता द्रष्टा रहते है। प्रश्न १६-परमशुद्ध निश्चयनयसे किसको नमस्कार हुआ ? उत्तर—यह नय विकल्पातीत अनादिनिधन स्वतःसिद्ध चैतन्यमात्रको देखता है, वहाँ । वन्धवेदक भाव नही है । प्रश्न १७-इस श्लोकमे किस नयसे वदन हुआ है ? उत्तर-शब्द-प्रणालीसे तो व्यवहारनयसे वंदन हुआ और(परमशुद्ध निश्चयनय व सर्वशुद्धनिश्चयनयको छोडकर, शेष अशुद्ध निश्चयनय व एकदेश शुद्धनिश्चयनयसे पूर्वोक्त वंदन अन्तनिहित है। प्रश्न १८--यहाँ सर्वदा वदन करना लिख रहे हैं यह तो सिद्धांतविरुद्ध भाव है, क्यों कि सम्यग्दृष्टि यदि सर्वदा कुछ चाहता है तो ज्ञानमात्र परिणमन ही चाहता है ? । उत्तर-यहां सर्वदाके कालको सीमाके भीतर ही लेना चाहिये अर्थात् जब तक निर्विकल्प स्थितिके सन्मुख नही हुआ तब तक आपका स्मरण वंदन रहे । जब तक अजीवसे पृथक् निज जीवस्वरूपको निर्विकल्प उपलब्धि न हो तब तक ध्यान रहे। प्रश्न १६-सिरसा शब्द देनेकी कोई विशेषता है क्या ? उत्तर-सिर श्रद्धाको हाँ के साथ ही झुकता है, इससे मनकी सभाल सूचित हुई। अन्तर्जल्पके साथ सिर नमता है, इससे वचनकी सभाल हुई। कायकी सभाल तो प्रकट व्यक्त
SR No.010794
Book TitleDravyasangraha ki Prashnottari Tika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSahajanand Maharaj
PublisherSahajanand Shastramala
Publication Year1976
Total Pages297
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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