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________________ गाथा २१ १०१ ख्यातवे भागमें से १ भागको समय कहते है। प्रश्न १२-पदार्थोका परिणमन यदि कालद्रव्यके आधोन है तो परिणमन पदार्थोंका स्वभाव ने ठहरेगा? Yarkaउत्तर- पदार्थका परिणमना तो पदार्थका स्वभाव ही है इसोको द्रव्यत्व स्वभाव कहते है । कालद्रव्य तो परिणमते हुए पदार्थोके परिणमनमें मात्र निमित्त कारण है। प्रश्न १३–यदि परमाणुको एक प्रदेशसे दूसरे प्रदेशपर पहुंचनेमे एक समय हो जाता है तब परमाणुको १४ राजूप्रमाण असख्यात प्रदेशोके उल्लंघनमे असख्यात समय लगते होगे? hne उत्तर- तीव्र गतिसे गमन करने वाला परमाणु एक समयमे १४ राजू गमन करता है । मन्द गतिसे गमनमे एक प्रदेशसे दूसरे प्रदेशपर पहुचना भी एक समयमे होता है । जैसे कोई पुरुष मन्दी चालसे २०० मील २० दिनमे जाता है वही विद्या सिद्ध होनेपर तीव्र गति से २०० मील १ दिनमें भी जा सकता है तो यह टाइम कही २० दिनका थोडे ही कहलावेगा इसी प्रकार परमाणु मन्द गति एक प्रदेश तक १ समयमे जाता है और तीव्र गतिसे असख्यात प्रदेश सीधा (१४ राजू) एक समयमे जाता है । प्रश्न १४- समय तो सत्य है किन्तु निश्चयकालद्रव्य कुछ प्रतीत नही होता? Jaaye -उत्तर- यदि समय ही समय मानते तो समय तो ध्र व है नही, वह उत्पन्न होता और दूसरे क्षण नष्ट होता अतः समय पर्याय सिद्ध हुई । अब यह समय नामक पर्याय किस द्रव्यकी है । जिस द्रव्यकी है उसीका नाम कालद्रव्य कहा गया है । प्रश्न १५- कालद्रव्य तो अन्य सब पदार्थों की परिणतिका निमित्त कारण है- कालद्रव्यकी परिणतिका कौन निमित्त कारण है ? उत्तर- कालद्रन्यकी परिणतिका निमित्त कारण वही कालद्रव्य है जैसे कि सब पदार्थोके अवगाहका कारण प्राकाश है और आकाशके अवगाहका कारण आकाश स्वयं है। प्रश्न १६ –समयका उपादानकारण परमारण का गमन है काल नही ? उत्तर-समयका उपादानकारण यदि परमाणु है तो परमाणुके रूप, रसादि समयमें होना चाहिये सो तो है नही । इस कारण समयका उपादानकारण परमाणु नही है । प्रश्न १७- मिनटका उपादानकारण तो घडीके मिनट वाले कांटे का एक चक्कर लगाना तो प्रत्यक्ष दीखता ? उत्तर- घड़ीका कांटा मिनटका कारण नहीं है, काटेकी वह क्रिया तो उतने समयका संकेत करने वाली है। यदि काटेकी पर्याय मिनट होता तो मिनटमे भी कांटेका रूप, रस आदि पाया जाना चाहिये, क्योकि कार्य उपादान कारणके सदृश देखा जाता है ।
SR No.010794
Book TitleDravyasangraha ki Prashnottari Tika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSahajanand Maharaj
PublisherSahajanand Shastramala
Publication Year1976
Total Pages297
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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