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युगवीर-निवन्धावली आजके विश्वकी दृष्टिमे जीनेका कोई अधिकार नहीं है। ऐसी हालतमे समाजको कालके किसी बड़े प्रहारसे पहले ही जाग जाना चाहिए और अपनेमे साहित्यिक सद्रुचिको जगानेका पूर्ण प्रयत्न करना चाहिये । इसके लिये शीघ्र ही संगठित होकर निम्न कार्योका किया जाना अत्यावश्यक है
(१) अपना एक ऐसा बड़ा ग्रन्थसग्रहालय देहली जैसे केन्द्र स्थानमे स्थापित किया जाय, जिसमे उपलब्ध सभी जैन-ग्रन्थोकी एक-एक प्रति अवश्य ही सगृहीत रहे और अनुसन्धानादि कार्योंके लिये उपयुक्त दूसरे ग्रन्थोका भी अच्छा संग्रह प्रस्तुत रहे।
(२) महत्वके प्राचीन जैन-ग्रन्थोको शीघ्र ही मूलरूपमें प्रकाशित किया जाय, लागतसे भी कम मूल्यमें बेचा जाय और ऐसा आयोजन किया जाय जिससे बडे-बडे नगरो तथा शहरोकी लायब्रेरियो और जेनमन्दिरोमे उनका एक-एक सेट अवश्य पहुँच जाय।
(३) उपयोगी ग्रयोका हिन्दी, अग्रेजी आदि देशी-विदेशी भाषाओमे अच्छा अनुवाद करा कर उन्हे सस्ते मूल्य द्वारा खूब प्रचारमे लाया जाय और अनेक साधनो द्वारा लोक-हृदयमे उनके पढनेकी रुचि पैदा की जाय ।
(४) सधे हुए प्रौढ़ विद्वानो द्वारा अथवा अच्छे पारखी विद्वानोकी देख-रेखमे ऐसे नये साहित्यका निर्माण कराया जाय जो जैन-साहित्यके प्रति लोकरुचिको जागृत करे, विद्वानोकी उपपत्तिचक्षु (समाधान दृष्टि) को खोले, उदारताका वातावरण उत्पन्न करे और लोकमे फैली हुई तन्वादि-विषयक भूल-म्रान्तियोको दूर करनेमे समर्थ होवे । ऐसे साहित्यको सर्वत्र सुलभ करके और भी अधिकताके साथ प्रचारमे लाया जाय । ऐसा साहित्य