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समाजमें साहित्यिक सद्रुचिका अभाव ८३९ निर्माण करानेके लिये कुछ अच्छे पुरस्कारोकी भी योजना करनी होगी, तभी यथेष्ट सफलता मिल सकेगी।
(५) अनेकान्तको सभीके पढने योग्य जैन-समाजका एक आदर्शपत्र बनाया जाय और प्रचारको द्वारा यथासाध्य ऐसा यत्न किया जाय कि कोई भी नगर-ग्राम, जहां एक भी घर जैनका हो, उसकी पहुँचसे बाहर न रह सके-वह सबकी सेवाम बराबर पहुँचा करे।
इन सब कार्योंके सम्पन्न होने पर साहित्यिक रुचि प्रबल वेगसे जागृत हो उठेगी और तब समाज सहज ही उन्नतिके पथ पर अग्रसर होने लगेगा । अत पूरी शक्ति लगाकर इन कार्योंको शीघ्र ही पूरा करना चाहिये-भले ही दूसरे कामोको कुछ समयके लिये गौण करना पडे ।'
१. अनेकान्त, वर्ष ११, किरण १२, मई १९५३ ।