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________________ 'जयधवला' का प्रकाशन श्रीगुणधराचार्य-विरचित 'कसायपाहुड' नामक सिद्धान्तग्रथपर वीरसेनाचार्यकी रची हुई 'जयधवला' टीका है, जो यतिवृपभाचार्यकी चूणिको भी साथ मे लिये हुए है और 'जयधवल' सिद्धान्तके नामसे प्रसिद्ध है। हालमे इस ग्रथरत्नके प्रकाशनकी एक योजना प्रोफेसर हीरालालजी जैन एम० ए०, एल० एल० वी० की ओरसे प्रकट हुई है, जिसके साथमे ग्रथकी रचनाका इतिहास ही नहीं, बल्कि ग्रथ जिस रूपमे–मूलप्राकृत, सस्कृतछाया, हिन्दी अनुवाद व टिप्पणीसहित जिस ढगसे-प्रकाशित किया जायगा उसका नमूना भी ग्रथके प्रारम्भिक अशको ११ पृष्ठोमे ( पृ० ६ से १६ तक ) छाप कर दिया है। अथके सम्पादनका सारा भार अकेले प्रोफेसर साहबने अपने कन्धोपर उठाया है और प्रकाशककी जिम्मेदारीको भेलसाके श्रीमन्त सेठ लक्ष्मीचन्द सितावरायजीने अपने ऊपर लिया है। सेठजीके ११ हजारके दानद्रव्यकी सहायतासे ही यह गुरुतर कार्य प्रारम्भ किया जा रहा है। ग्रथको प्राय सौ सौ पृष्ठोके खडोमे द्विमासिक या त्रैमासिक रूपसे निकालनेका विचार प्रकट किया गया है, जनतासे अधिक संख्यामें ग्राहक होनेकी अपील की गई है और उसकी सहायता व सहानुभूति मांगी गई है। जिस प्राचीन महत्वके ग्रन्थका वाँसे सिर्फ नाम ही सुना जाता था, कुछ अपवादोको छोडकर शेषको जिसका दर्शन भी अभी तक प्राप्त नही हुआ था और जो मूडबिद्रीकी कालकोठरीसे किसी तरह बाहर आकर भी अलभ्य बना हुआ था उसके एकदम प्रकाशनकी योजनाके समाचारोको सुनकर किस पुरातन जैन
SR No.010793
Book TitleYugveer Nibandhavali Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1967
Total Pages881
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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