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विवाह-दोत्र-प्रकाश प्राचीनकालमे विवाहके लिये कुल, गोत्र अथवा जतिका ऐसा कोई खास नियम नही था जो हर हालतमे सबपर काबिल पावदी हो—अथवा सवको समान रूपसे तदनुसार चलनेके लिये बाध्य कर सके-और उसका उल्लघन करनेपर कोई व्यक्ति जातिबिरादरीसे पृथक अथवा धर्मसे च्युत किया जा सकता हो । ऐसी हालतमे, आजकल एक विवाहके लिये कुल-गोत्र अथवा जातिवर्णको जो महत्त्व दिया जाता है वह कहाँ तक उचित है और उसमे कोई योग्य फेरफार बन सकता है या कि नही, इसका आप स्वय अनुभव कर सकते हैं।
प्रथमावृत्ति, अगस्त १९२५