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मोक्षाधिकार
( ३०५-३०६ ) निर्विकल्प दशा में प्रतिक्रमण का विकल्प विष कुंभ है निरपराध चेतन रहता है सतत निशंक और स्वाधीन । निज को शुद्ध अनुभवित कर वह निज में ही रमता अमलीन । प्रतिक्रमण, प्रतिसरण, धारणा, निंदा, गर्हा और निवृत्ति । शुद्धि तथा परिहार, अष्ट बिध है विषकुंभ सदा चिवृत्ति ।
( ३०७/१ ) अप्रतिक्रमण (निर्विकल्प दशा) अमृत कुंभ है अप्रतिक्रमण, निदा गर्दा, अथवा अधारणा निः परिहार । वा अनिवृत्ति, अशुद्धि ये कहे अमृत कुंभ मुनि जीवन सार । यतः स्वानभव रत रहता जन निर्विकल्प बन निजरसलीन । उपर्युक्त परिपूर्ण कथन भी उसे लक्ष्य कर किया, प्रवीण !
( ३०७/२ )
विकल्प मात्र बंधन का कारण प्रतिक्रमणाप्रतिक्रमण प्रादि कृत जब तक है संकल्प विकल्प - तब तक कर्म बंध होता है, अस्त न यावत् अंतर्जल्प । 'मैं हूं प्रतिक्रमण का कर्ता' यों जागृत हो जब अभिमान ।
मात्म साधना की न गंध तब रहती, होता बंध निदान । (३०७/२) अंतवल्प-मानसिक विकार । तादात्म्य-पणिमता एकत्व ।