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७.] त्रिषष्टि शलाका पुरुष-चरित्रः पर्व १.सर्ग १.
उनको पेलते हैं। (५७०-५५२) ____ थलचर जीवोंमें मांसकी इच्छावान्ले बलवान सिंह वगैस गरीब हिरन वगैगयोंको मारते है, शिकारके शौकीन उन गरीब निरपराध प्राणियोंको, मांसके लिए या कंबल शिकारका शोक प्रग करनहीं लिए. मारत है। बेल वगंग पशु मृग्य, प्यास, सरदी और, गरमी सहन करते हैं, बहुत बोमा उठाते हैं
और चाबुक, अगई श्रादिके श्राघात सहत हैं। (५७३-५५५.) ___ श्राक्रशचारी लीवों में से तीतर, तोता, ऋचूनर, चिड़िया वगैरानीको मांसमनी बाज, गीध, सिंचान (शिकरा) वगैग पकड़कर खाजाते हैं और चिड़ीमार उन सबको अनेक तरकीबोंसे पकड़त है और तरह तरह सताकर मार डालन है। उन तिचंचोंको दूसरे. शत्रों श्रादिका और लल (श्राग वगैराका ) भी बहुन दुर रहता है। पूर्वकमांका बंधन ऐसा होता है कि निसका विस्तार रोका नहीं जा सकता। (५७६-y ) ___लो जीव मनुष्ययोनिमें जन्म लेते हैं उनमेंसे भी अनेक ऐसे होते हैं, जो जन्महीसे अंध, बहर, जुन्ने, लँगई और कोढ़ी होने है। ऋई चोरी करनेवाले श्रार. कई परस्त्रीगामी मनुष्य अनेक नरहकं दर पार्कर नारकी जीवोंकी तरहही दुग्न पाते हैं। कई अनेक तहके गंगाम फंस जाते हैं और अपने पुत्रोंसे भी उपचिन होते हैं-उनके बेटे भी उनकी परवाह नहीं करतं । कई विकत है और (नोकर, गुलाम श्रादि होकर चरीकी तरह अपने स्वामियास पिटत है, अपमानित होते हैं, बहन बोमा उटाते हैं और भूख-प्यास दुःख सहते हैं। (५७-५८२)