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: छठा सर्गः- परित्राजकोंकी उत्पत्तिः राजकुमार कपिलका परिव्राजक होना, अतिशय, अष्टापद, समवसरण, बारह पर्षदा, इन्द्रोत्सवकी स्थापना, विहार (४३५-४५६) ब्राह्मणों और यज्ञोपवीतकी उत्पत्ति, भावी त्रिषष्टिशलाकापुरुष, शत्रुजय, पुण्डरीक गणधरादि साधुओंका निर्वाण ( ४५६४६१) भगवान आदिनाथ प्रभुका परिवार, निर्वाणोत्सव (४८१-४६० ) भरतका अष्टापद पर मन्दिर बनवाना और प्रभुस्तुति करना (४६१-५०३) भरतका वैराग्य, गृहस्थावस्था में केवलज्ञान, भरतकी दीक्षा और मुक्ति (५०३-५०६).
.. :: ... . . पर दूसरा .. . ... .: पहला सर्ग:-श्री अजितनाथ चरित्रः प्रथम भव-विमल वाहन राजा, राज्यत्याग, प्रजापालनका उपदेश, दीक्षा, समिति, गुप्ति, परिसह (५१०-५४१) दूसग भव-विजय विमानमें देव (५४१-४२)
. दूसरा सर्ग-तीसरा भव-तीर्थंकरकी और सगर चक्रीकी माताओंके चौदह चौदह स्वप्न, स्वप्नोंके फल, अजितनाथ-- जीको जन्म, इन्द्रादि देवों द्वारा जन्मोत्सव, सगरका जन्म जन्मोत्सव (५४३-५६३)
तीसरा सर्ग-दोनोंका : बचपन, यौवन, रूपवर्णन, विवाह, राज्यप्राप्ति, त्याग, सगरकी राज्यप्राप्ति, प्रभुकी दीक्षा (५६४-६२६) गुणस्थान, अजितनाथजीको केवलज्ञान, उत्सव, समवसरण, देशना, धर्मध्यान, आठ कर्म, चौदह राजलोक (६२६-६७२) गणधरोंकी स्थापना, अधिष्ठायक महायता अधिष्ठायिका अजितबला, सम्यक्त्वका माहात्म्य (६७२-६८४)