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दूसरा सर्ग - सागरचंद्रा वृत्तांत ( १११--१६५ ) सान कुलकर (१२५-१३३) हाँ म-देवजी की माताके चौदह स्वप्न और उनका फल ( १६३-१३६ ) अपभदेवfter जन्म, २६ कुमारियोंका व ६४ इन्होंका थाना और जन्मोत्सव करना ( १३६-१७३) नामकरणं संस्कार,
स्थापन और न ( १७१-१७७) जवानी, रूपका वर्गात (१७७-१८०) सुनंदा (१९६२-१८१) व्याह (१८४-२६५) गृहस्थजीवन, सन्तानोत्पत्ति, राज्याभिषेक, कलाओंकी शिक्षा (१६५-२०६) वसन्तवर्णन, वैराग्य (२०६-२१२) |
तीसरा सर्ग - राज्यत्याग और दीक्षा (२१३-२२१) साधुयवस्था (२२१-२३८) श्रेयांसकुमारसे प्रभुका इक्षुरस पाना ( २३८-२१३) आदित्य पीठ (२४४ ) धर्मचक्र (२२२-२४६ ) केवलज्ञान (२४६-२५२ ) समवसरण (२४२-२५८) मरुदेवी मानाको केवलज्ञान और सोच ( २५-२६३.) भरतकृत स्तुतिः देशना [ संसार की असारता, मोक्ष प्रामिके लिए प्रयत्त, ज्ञान-दर्शनं चारित्र ] ( २६३ - २७१ ) चतुर्विध संवकी स्थापना, सैकडों का दीक्षा लेना, चतुर्दश पूर्व और द्वादशांगकी रचना । गोमुख श्रधिष्ठायक देव और चक्रेश्वरी शासन देवी (२७१-२४९)
चतुर्थ सर्ग - संतों का वृत्तांतः, चौदह रत्नों की प्राप्ति, छः खण्ड पृथ्वी जीवना (२८०-३४७)
पाँच वर्ग
भरत और बाहुबलीका वृतांत
( ३८५-१३१ )