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२] त्रियष्ट्रि शलाका पुन्य-चरित्र
(ग) सूक्ष्मनिया प्रतिपाती-इसमें मन-वचनके व्यापारोंको सर्वथा रोककर और, शरीरके म्यूल व्यापारोंको रोककर, सूक्ष्म व्यापारका आश्रय लिया जाता है। इसमें केवल श्वासोश्वास चलता रहता है। इसमेंसे पतन नहीं होता।
(घ) समृच्छिन्न क्रियानिवृत्ति-इसमें शरीरकी श्वासोश्वास प्रादि क्रिया भी बन्द होकर आत्मप्रदेश सर्वथा निष्कम्प हो जाते हैं। इसके प्रभावसे पानव और बंबका निरोध होता है; काँका नाश होता है और मोक्ष मिलता है। ___' और 'घ शुक्लध्यानों में श्रुतका अवलम्बन नहीं होता, इससे इन्हें अनालंबन' भी कहते हैं। शुक्लब्यानके चार लक्षण है:-क्षमा, निरहना, आर्जव-सरलता और मार्दव-मानका त्याग। -शुक्लथ्यानके चार आलंबन है:-अन्यथा-निर्भयता, मोहका प्रभाव, विवेक-शरीर व यात्माकी भिन्नताका ज्ञान, और व्युत्सर्ग त्याग:-शुक्लचानकी चार भावनाएं हैं:-संसार के अनंत वृत्तिपनका विचार, वन्तुधों में प्रतिक्षण होनेवाले परि.. वर्ननका विचार, संसारकी अशुमताका विचार, और हिंसादिसे। स्पन्न होनेवाले अनयाका विचार । ___ व्युत्सर्ग-त्याग दो नरहका होता है-द्रव्ययुत्सर्ग और भावव्युत्सर्ग । द्रव्यव्युत्सर्ग चार तरहका होता है:-गणन्युत्सर्ग, शरीरव्युत्मार्ग, उपंधि (साधन सामग्री) व्युत्सगं, और आहारपानी व्युत्सर्ग । भावव्युत्सर्ग तीन तरहका होता है:-ऋपायव्युत्सर्ग (क्रोध-मान-माया-लोभका त्याग), संसार व्युत्सर्ग(नारकी, नियंच, मनुष्य और देवके संसारका त्याग), कर्मव्युत्सर्ग (वातावरणादि पाठों कर्मों का त्याग देखों पेज ६३६) ।