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२०] त्रिषष्टि शलाका पुरुष-चरित्र
[नित्यक आचरणको चरण कहते हैं। साधु उपर लिखी वाते सदा आचरणमें लाते हैं।]
६-ध्यान उत्तम संहननबालेका किसी एक विषयमें अन्त:करणाकी वृत्तिका स्थापन करना, ध्यान है। यह अन्तमुहर्त तक रहता है। मनके संकल्प-विकल्पोंको छोड़नेको भी ध्यान कहते हैं। ध्यानफ्रे चार भेद है -प्रात, रौद्र, धर्म और शुक्ल ।
१.आतच्यान-अनिका अर्थ हुन्न है, इससे जो मनम भाव उत्पन्न होता है उसे 'बात कहते हैं। दुःख चार तरहसे उत्पन्न होता है-अप्रिय वस्तु मिलनेस, प्रिय वस्तुके चले जाने से,रोगसे, अप्राप्त वस्तुको प्राप्त करने के संकल्पस; इसीसे इसके चार भेद किए गए हैं। १-अनिष्टसंयोग; २-इष्टवियोग; ३रोगचिंता; और निदान आध्यान | आतंथ्यानके चार लक्षण हैं-जोरसे रोना, दीनता, चुपचाप ऑस गिराना और वार बार दुःखपूर्ण वचन बोलना।
२. सैद्रव्यान-जिसका चित्त ऋर होता है उसे 'मुद्र, कहते हैं और ऐसे प्रात्माका जो चिंतन होता है, उसे 'रोद, कहते हैं। यह करता चार नरहसे उत्पन्न होती है-हिंसासे, मुठसे चोरीस, मिली हुई चीजोंकी रक्षा करनेके ग्यालसे। इसी. से इसके चार भेद किए गए हैं। १-हिंसानुबन्धी; २-अनृतानुन्धी, ३-स्तंयानुबंधी धार.?-विषयसंरक्षणानुबंधी रोद्रध्यान। गद्रध्यानक चार लक्षण है। हिमाके विचार करना; हिंसाके काम करना; हिमादि धर्मके काम धर्मबुद्धिसे करना और गरा तक पापांका प्रायश्चित्त नहीं करना ।