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श्री अजितनाथ चरित्र
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वाले और जहाँ चारण-भाट मांगलिक गीत गारहे है ऐसे अपने घरके आँगनमें पहुंचे। फिर महाराजाने, सदा अपने साथ रहनेवाले सोलह हजार देवताओंको, बत्तीस हजार राजाओंको, सेनानी, पुरोहित, गृहपति और वर्द्धकी नामके इन चार महारत्नोंको, तीन सौ साठ रसोइयोंको, श्रेणीप्रश्रेणियोंको, दुर्गपालोंको, सेठोंको, सार्थवाहोंको और दूसरे सभी राजाओंको अपने अपने स्थानोंपर जानेकी आज्ञा दी। फिर उसने अंत:पुरके परिवार और स्त्रीरत्न सहित, सत्पुरुपोंके मनके जैसे, विशाल और उज्ज्वल मंदिरमें प्रवेश किया। वहाँ स्नानगृहमें स्नान और देवालयमें देवपूजा कर राजाने भोजनगृहमें जाकर भोजन किया। फिर साम्राज्य लक्ष्मीरूपी लताके फलोंके समान संगीत, और नाटक वगैराके विनोदोंसे चक्री क्रीड़ा करने लगा।
(३३५-३४८) ' ' एक दिन देवता आकर सगर राजासे कहने लगे, "हे राजा! तुमने इस भरत क्षेत्रको वशमें किया है इससे, इंद्र जैसे अहंतका जन्माभिषेक उत्सव करते हैं वैसेही, हम तुम्हारा चक्रवर्तीपदका अभिपेकोत्सव करेंगे।
यह सुनकर चक्रवर्तीने, लीलासे जरा भ्रकुटी झुकाकर, उनको आज्ञा दी। . "महात्मानः प्रणविनां प्रणयं खंडयंति न।" .
[महात्मा लोग स्नेहीजनोंके स्नेहका खंडन नहीं करते हैं। फिर आभियोगिक देवोंने, नगरके ईशान कोणमें अभिषेकके लिए एक रत्नमंडित मंडप बनाया। वे समुद्रों, तीथां, नदियों और द्रहोंका पवित्र जल तथा पर्वतोंसे दिव्य औषधे लाए । जय