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श्री अजितनाथ चरित्र
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प्रतिमापर जैसे प्राचार्य क्षेपन करते हैं वैसेही, उसने चक्रपर क्षेपन किया-डाला। देवोंके योग्य महामुल्यवान वस्त्रालंकारोंसे राजाने, अपने शरीरकी तरह, चक्ररत्नको सजाया। आठों दिशाओंकी जयलक्ष्मीका आकर्षण करनेके लिए, अभिचार! मंडल हों ऐसे, आठ मंगल, चक्र के सामने चित्रित किए । उसके पास, वसंतकी तरह अच्छी लुगंधवाले, पंचवर्णी फूलोंका ढेर लगाया । उसके सामने कपूर और चंदनका धूप किया। उसके धुएँसे ऐसा जान पड़ा मानो राजा कस्तूरीका विलेपन करता है। फिर सगरने चक्रको तीन प्रदक्षिणा दे, जरा पीछे हट, जय. लक्ष्मीको पैदा करने के लिए समुद्ररूप चक्ररत्नको पुनः प्रणाम किया, और नये प्रतिष्ठित देवके लिए किया जाता है वैसा चक्ररत्नका अष्टाहिका महोत्सव किया। नगर-सीमाकी देवीकी तरह नगरके सभी लागोंने भी बड़ी धूमधामसे चक्रका पूजा-महोत्सव किया। (१-२७) __फिर दिग्यात्राका विचार चक्ररत्नने प्रकट किया हो वैसे उत्सुक होकर राजा अपने महल में गया और ऐरावत हाथी जैसे गंगामें स्नान करता है वैसेही उसने स्नानगृहमें जाकर पवित्र जलसे स्नान किया। फिर रत्नस्तंभकी तरह, दिव्य वनसे अपने शरीरको साफ कर, राजाने उजले दिव्यवस्त्र धारण किए। गंधकारिकाएँ आकर, चंद्रिकाका रस बनाया हुआ हो ऐसे
१-बुरे काम के लिए मंत्र प्रयोग करना । तंत्रके अनुसार प्रकारके अभिचार होते हैं-मारण, मोहन, स्तंभन, विद्वेषण, उच्चाटन और वशीकरण । यहाँ वशीकरण अर्थ है। २-रलोका पना स्तंभ। ३-इतर चंदन श्रादि लगानेवाली।