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श्री अजितनाथ-चरित्र . [ ६७५ विराम लिया जैसे पथिक चलनेसे विराम लेता है । देशना समाप्त होने पर सभी देवता प्रभुको प्रणाम करके अपने अपने स्थानोंको जाने के लिए रवाना हुए। मार्गमें उन्होंने नंदीश्वर द्वीप पर जाकर अंजनाचलदिकके ऊपर शाश्वत अहंतकी प्रतिमाओंका अट्ठाई महोत्सव किया। फिर यों बोलते हुए कि हमें ऐसी यात्रा करनेका बार वार अवसर मिले" वे अपने अपने स्थानों पर जैसे आए वैसेही गए । (८३१-८४०)
सगर चक्रवर्ती भी भगवानको नमस्कार कर लक्ष्मीके संकेतस्थानरूप अपनी अयोध्या नगरीमें गया।महायक्ष नामका चतुर्मुख यक्ष अजितनाथके तीर्थका अधिष्ठायक हुआ । उसका वर्ण श्याम और वाहन हाथी था। उसकी दाहिनी तरफके चार हाथोंमें वरदा, मुद्गर, अक्षसूत्रर और पाशिन' थे और बाई तरफके चार हाथों में वीजोरा, अभय, अंकुश और शक्ति थे। प्रभुके शासनकी अजितबला नामकी चार हाथोंवाली देवी अधिष्ठायिका हुई । उसका वर्ण सोनेके जैसा है। उसके दाहिने हाथोंमें वरद तथा पाशिन है और बाएँ हाथों में बीजोरा तथा अंकुश हैं। वह लोहासनपर बैठी है । (८४१-८४६)
चौंतीस अतिशयोंसे सुशोभित भगवान सिंहसेनादि गणपरों सहित पृथ्वीमें विहार करने लगे। प्रत्येक गाँव, शहर और
करमें विहार करते हुए और भव्य प्राणियोंको उपदेश देते हुए कृपासागर प्रभु एक वार कोशांबी नगरीके समीप पहुँचे। कोशांबीके ईशान कोणमें एक योजनमात्रके क्षेत्र में देवताओंने
-सूर्य पुष्प । २-रुद्राक्षको माला। ३-फांसा