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६७४ ] त्रिपष्टि शलाका पुरुष-चरित्रः पर्ष २. सर्ग ३.
का, अच्छी तरहसे बनाया गया था। देवताओंके द्वारा डाली गई गंधमुष्टियोंसे' उसकी सुगंध फैल रही थी। श्रेष्ट पुरुपोंने उसको उठाया था, साथमें चलते हुए नगारोंकी आवाजोंसे दिशाओंके मुख प्रतिध्वनित हो रहे थे। स्त्रियाँ गीत गाती हुई उसके पीछे चल रही थीं और भौरांसे जैसे कमलकोश घिर जाता है वैसेही नगरके लोगोंसे वह घिरा हुआ था। फिर उन सय लोगोंने प्रभुकी प्रदक्षिणा करके, देवताओंने जैसे पुष्पवृष्टि की थी वैसेही, बलि प्रभुके सामने उछाला । श्राधा भाग ऊपरहीसे, जमीनमें न गिरने देकर देवताओंने ले लिया । पृथ्वीपर गिरे हुए भागमेंसे आधा भाग सगर राजाने लिया और बाकी बचा हुआ भाग दूसरे लोगोंने लिया। उस वलिके प्रभावसे पुराने रोग नष्ट होते हैं और छह महीने तक नवीन रोग नहीं होते । (८२४-८३०)
मोक्षमार्गके नेता प्रभु सिंहासनसे उठ उत्सर द्वारके मार्गसे निकले और मध्यगढ़क वीच ईशान दिशामें बनाए हुए देवछदपर उन्होंने विश्राम लिया। फिर सगर राजाके धनवाए हुए सिंहासनपर बैठकर सिंहसेन नामके मुख्य गणधर धर्मदेशना देने लगे। भगवानके स्थान के प्रभावसे गणधरने जिन्होंने पूछां उनको उनके असंख्य भव बता दिए । प्रभुकी सभामें संदेहोंका नाश करनेवाले गणधरोंको किसीने-सिवा कंवलियोंकेछद्मस्थ' नहीं समझा। गुरुके श्रमका नाश, दोनोंका समान विश्वास और गुरुशिष्यका क्रम-ये गुण गणधरकी देशनाक है। दूसरी पौरुपी समाप्त हुई तब गणधरने देशनासे इसी तरह
१-मटियाँ भर भरकर डाली गई सुगंधियोंसे।